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श्रीविजयकुंवर विजयाकुंवरीनी सद्याय. (३) नियम लिया हे खुसीकुं ॥ करजोडी कुमरी कहे कुमरशुं घरजी, पण वात ए बानी केम रहेशे कुंवरजी ॥ सुखी ससरो सासु घणां खीजशे तुमशुं, पनी किसी शरमसें रह्यो जायशे हमशुं ॥ धन ॥ ११॥ सुण प्रीतम प्यारी एह थापणी शिक्षा, यह बात प्रगटी तब निश्चे लेवी दीक्षा ॥एकण सेजें सोवे सुंदरिअरुसांई,सुते सुते बाल करे ज्युं बहेन ने नाई॥ दौ बेर करे पडिक्कमण सामायिक आई, करे दान शील तप जली नाव | ना नाई। तिहां बार वरस वदि गयां एम करंतां, पनी वात विस्तरी शीलपणे विचरंतां ॥ धन ॥ १५ ॥ तब दक्षिण देशमें विजया विज यजी केरां, श्रीविमलकेवली कियां वखाण घरोरां ॥ बेहु चरमशरीरी डे महा उत्तम प्राणी, सहु अचरिज पाम्यां सुणि केवलिमुख वाणी। सुणि जिनदास श्रावक हु बहुत प्रसन्न, हुं जा करुं तिहां हर्ष धरी दरशन्न ॥ बहु दर्प नावणुं श्राव्यो नगरि कोसंबो, श्री विजयकुमरनी वात सुणी अचंनी ॥ धन ॥ १३॥ बहु हर्ष नावथी मलियो कुंधर कुंवरियां, परिवार जिमाया बहुत हर्ष मन धरिया ॥ तव मात तात कुम रका घणुं उमाह्या, तुम कहो शेठजी कुण सगपणलें आया॥श्रीजैनधर्म स्नेहें होशें करी आयो, शीलवंत कुमर कुमरीको दरिसन पायो॥ धन्य तुमचे कुलमें उपना उत्तम प्राणी, श्रीविमल केवली शोजा घणी वखाणी ॥ धन ॥ १४ ॥ एक सेजे सोवे शील निर्मबुं पाले, बिहुँ बाल ब्रह्मचारी आतमने अजुवाले ॥ बहु अचरिज सरखी वात सुणी हुँ आ यो, वली नावमुनिको दर्शन निर्मल पायो॥ तब सात तात कहे कहोजी हमकुंन्हाना, तुम किसी जातका नियम लीया है बाना ॥ तब नेत्र नी चां करी वात कहे विस्तारी, अब संयम लेवा श्ला नई हमारी ॥ धन ॥ १५ ॥ जव मात तात मागे कुंवरजी आग्ना, तब नात जात सब कुमरकुं कहने लाग्या ॥ तव बहुत हवनशुलही कुमरजी शिक्षा, चढते परिणामें दोनुं लीनी शुरू दीक्षा ॥ बहु कठिन होनें तपस्याशुं लय ला इ, नवि जीव सुधाख्या शुभ समकित पद पा॥अरे जीव अब बती वांडे किम बटका, धन्य विजय विजया (कुमरी) ने अधिक करी अधिकाई ॥ धन ॥ १६॥ चढते परिणामें करणी कीधी निर्मल, मुनि मुक्त पहोता दोनुं पाम्यां केवल॥श्रीदोलतरामजी अनेजीवाजी स्वामी, शषि लालचंद
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