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________________ दशवैकालिकनी सद्याय. (ZIU) आमरण || छाया कारण बत्र न धरियें, धरे न उपानह चरण के ॥ मु० ॥ ५ ॥ दात न करे दर्पण न धरे, देखे नवि निज रूप || तेल चोपडीये ने कांकसी न कीजें, दीजें न वस्त्रे धूप के ॥ मु० ॥ ६ ॥ मांची पलंग नवि बेसीजें, किजें न विंजणे वाय ॥ गृहस्थगेह नवि बेसीजे, विण कारण समु दाय के || ० || || वमन विरेचन चिकित्सा, अग्नि रंज नवि कीजें ॥ सोगतां त्रज प्रमुख जे क्रीडा, ते पण सवि वरजीजें ॥ मु० ॥ ८ ॥ पांच इंद्रिय निजवश आणी, पंचाश्रव पञ्चरकीजें ॥ पंच समिति त्रण गुझि धरीनें, बक्काय रक्षा ते कीजें के ॥ मु० ॥ ए ॥ लुनाले आतापना लीजें, शीयाले शीत सहीयें ॥ शांत दांत घर परिसह सहेवा, स्थिर वरसाले रहिये के ॥ ० ॥ १० ॥ इम डुक्कर करणी बहु करतां धरता जाव उदा सी ॥ कर्म खपाव के हुआ, शिवरमणीशुं विलासी के ॥ ॥ मुण् ॥ ११ ॥ दशवैकालिक त्री जे अध्ययनें, जांख्यो एह आचार || लाभ विजयगुरु चरण पसाये, वृद्धि विजय जयकार के ॥ मु० ॥ १२ ॥ इति ॥ ॥ अथ चतुर्थाध्ययन सद्याय प्रारंभः ॥ ॥ सु सु प्राणी, वाणी जिन तणी ॥ ए देशी ॥ स्वामी सुधर्मा रे कहे जंबु प्रत्ये, सुण सुण तुं गुणखाणि ॥ सरस सुधारसहूंती मीठडी, वीर जिणेसर वाणी ॥ स्वा०॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ सूक्ष्म बादर त्रस यावर वली, जीव विराह टाल || मन वच काया रे त्रिविधे स्थिर करी, पहिलुं व्रत सु विचार | स्वा०||२|| क्रोध लोन जय हास्यें करी, मिथ्या मनांखो रे वया ॥ त्रिकरण शुद्धे व्रत आराधजे, वीजुं दिवस ने रयण ॥ स्वा० ॥ ३ ॥ गाम नगर वनमांदे विचरंतां, सचित्त चित्त तृण मात्र ॥ कां अदीघां मत अंगी करो, त्रीजुं व्रत गुणपात्र | स्वा० ॥ ४ ॥ सुर नर तिर्यंच योनि संबं धियां, मैथुन कस्य परिहार || त्रिविधे त्रिविधे तुं नित्य पालजे, चोथुं व्रत सुखकार ॥ स्वा० ॥ ५ ॥ धन कण कंचन वस्तु प्रमुख वली, सर्व चित्त सचित ॥ परिग्रह मूर्छा रे तेहनी परहरी, धरी व्रत पंचम चित ॥ स्वा० ॥ ६ ॥ पंच महाव्रत एणी परें पालजो, टालजो जोजन राति ॥ पापस्थानक सघलां परहरि, धरजो समता सवि जांति ॥ स्वा० ॥ ७ ॥ पुढवी पाणी वायु वनस्पति, अग्नि एयावर पंच ॥ विति च पंचिंदि जलयर थलयरा, खयरा त्रस ए पंच ॥ स्वा० ॥ ८ ॥ ए बक्कायनी वारो
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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