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पनर तिथिनी सद्याय.
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पच्चरका अमोल रे ॥ ला० ॥ जाए लान अतोल रे, मुक्तिशुं करि बंध कोल रे, लब्धि जो दिल खोल रे, वाजे जीतना ढोल रे ॥ ला० ॥ ५ ॥ ॥ अथैकादशीनी सच्चाय प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ इम दशतिथि अधिकार छाथ, किंचित् कह्यो चरित्र ॥ शा त्रता अनुसारथी, वर्णन करी विचित्र || १ || हवे एकादशितिथि तणा, हे सूरिजन माहाराज ॥ त्रिकरण करीनें प्रातमा, निसुणो यइ मृगराज ॥२॥ ढाल || जय नगीनो माहरो || ए देशी ॥ हवे एकादशी इम वदे,
विजन सीयें विपयासत्त हो ॥ वसन उढो निर्विकारनां ॥ ० ॥ जेह नी वे सवल प्रतीत हो ॥ १ ॥ गुणना रागी नवी, अवगुण त्यागी सदी होयें || पामी मनुतव संत हो ॥ ए आंकणी ॥ ध्यान ती अंगी ठिका ॥ ० ॥ जोजन तिम संतोष हो || आसव समता पीवतां ॥ ज० ॥ करजो काया पोप हो || गुण ० ॥ ० ॥ ॥ माया निशा डूरें की जीयें ॥ ॥ शुद्ध स्वभावें क्षीण हो ॥ तैलाभ्यंग तिम उदासीनता ॥ च॥ श्रुत तंबोल प्रवीण हो ॥ गु० ॥ ॥ ३ ॥ उंचा महेल विवेकना ॥ ज०॥ वास करो तेह मां हो ॥ श्रग्यार वोले ते धारियें ॥ ज० ॥ रसपोषण के जेह हो ॥ ० ॥
oilall ग्यार यंग रस सांजली ॥ ज० ॥ प्रतिमा वहो अग्यार हो || कर्म कठिन दूरें करी ॥ ज० ॥ लहियें युं मुक्ति डुबार हो | गुणा ॥ एकादशी तप की जियें ॥ ज० ॥ एक एकादश वर्ष हो । अग्यार अंग वा चक होवे ॥ ० ॥ पामियें सुजस हर्ष हो ॥ गुण ॥ अ० || ६ || इविध नविय आदरो ॥ ज० ॥ जाणो एकादशी सार हो । लब्धि कड़े नवि सांनलो ॥ ज० ॥ होत्रे ज्युं जव निस्तार हो ॥ गुण ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ द्वादशीनी सद्याय प्रारंभः ॥
रहो रहो वाला || ए देशी ॥ द्वादशी कहे विज्ञावशुं, कीजें धर्मनी गोठ लाल रे ॥ विष दामें रस लीजीयें, जिम साकरनी जरी पोठ लाल रे ॥ १ ॥ जावे वियण सांनलो ॥ ए आंकणी ॥ वारशें वार उपांगना, नि सुणो जे का बोल लाल रे || स्वाद ल्यो अमृत तेहना, टाली जडत निटोल लाल रे || जा० ॥ २ ॥ वारे व्रत नवि नम्वरी, मेलीयें सुकृत माल लाल रे ॥ कर्म मलीन डूरें करी, श्रावक कुल अजुवाल लाल रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ वारे भेदें तप जे अबे, आदरो बंदी क्रोध लाल रे ॥ बारे