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,सद्यायमाला.
नाद तो रसें वादिया रे, जो लय लीया थाप ||| ३ || करिणी फरसें मोहिया रे, हाथिया चूके ठाम ॥ दरबारें श्रावी रही रे, परवशं सेवे गाम ॥ ज० ॥४॥ रूपें लुब्ध पतंगीयो रे, दीवे होमे अंग ॥ गंध तो रस पंकजें रे, बंधन पामे भृंग ॥ ज० ॥ ५ ॥ श्रामिष रस वश माढलो रे, एकमनो जो होय || पेत्रो ततक्षण बापडो रे, वेदन पामे सोय ॥ ज० ॥ ६ ॥ एके कनें परवरों रे, जो ए दुःखी या थाय ॥ तो पांचे परवश तणी रे, कड़ो गति केल काय ॥ ज० ॥ ॥ इम जाणी ए कीपतां रे, पामे नित्य आणंद ॥ विजयसिंह गुरुनी परें रे, उदय सदा सुखकंद ॥ ज० ॥ ८ ॥ इति ॥
॥ अथ त्रयोस्त्रिंशत्तम कर्मपयडी अध्ययन सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ तोगले मेवाडो राणो लोकियो रे ॥ ए देशी ॥ केवलनाऐं जाणतो रे लो, बोले श्री जिनवीर रे ॥ मुशिंद राय ॥ आठ करमने वश पढ्यो रे लो, न बहे जवजल तीर रे ॥ मु० ॥ कर्म कठिन दल जीतीयें रे लो !! आए जीते ते लदे रे बो, सुख सघलां वड वीर रे || सु|| क० ॥ १ ॥ ए
कणी ॥ नाग पंचने यावरे रे लो, नाणावरणी सोयरे ॥ मु० ॥ दंसणने जे वरे रे लो, ते नव भेदें होय रे ॥ मु० ॥ क० ॥ २ ॥ दोय जेदें कछु वेदनी रे लो, मोहनेया अडवीस रे ॥ मु० ॥ नयर सिरिय नर सुर तं रे लो, आयु कहे जगदीश रे ॥ मु० ॥ क० ॥ ३ ॥ तिन्नी अधिका एक सो रे. लो, नाम कर्मना जेद रे ॥ मु० ॥ गोत्र तथा नेद दो का रे लो, विधन तथा पण जेद रे ॥ मु० ॥ क० ॥ ४ ॥ अट्ठावनशुं खागली रे लो, एकसो पडी होय रे ॥ मु० ॥ अध्ययने तेत्री शमे रे लो, ए परमारथ जोय रे ॥ कणा॥ विजयदेव पाटें जयो रे लो, श्री विजयसिंह गणधा ररे ॥ मु० ॥ तेह तो बालक कहे रे लो, उदय विजय जयकार रे ॥६॥ ॥ श्रथ चतुस्त्रिंशत्तम लेश्याध्ययन सद्याय प्रारंभ ॥
॥ वेगें पधारो महेलथी | ए देशी || किसन नील कापोतें ए, तेज पद्म च पंच ॥ शुकल बड़ी एहना, हवे सुणो वर्ण प्रपंच ॥ १ ॥ ब लेश्याशुं विचारी ॥ कणी ॥ जिम तरीयें संसार | पहेली त्रये परहरी, वलिं त्रण धरियें सार ॥ ४० ॥ २ ॥ पहेली कडुई शामली, बीजी नीली तीख ॥ श्रीजी शामल रातडी, ते कषायेली पीख ॥ ४० ॥ ३ ॥ चथी आंबिल रा 'सडी, पीली आसव सार ॥ पंचमी बडी उजली, साकर सरखी धार ॥ बं
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