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उत्तराध्ययननी सद्याय.
(३१)
बालकने थरे समाधि | मा० ॥ १३ ॥ मुक्तिमुनि पहोतो जय वरत्या, ए अधिकार शेष || अध्ययने वारमें वखाप्यो, श्रीमहावीर जिणेश | मा० ॥ १४ ॥ विजयदेव गुरुपाट प्राजाविक, श्री विजयसिंह सूरिराय || तेह तणो वालक इम बोले, उदयविजय उवकाय || माण ॥ १५ ॥ इति ॥
॥ अथ त्रयोदश चित्रसंभूति अध्ययन सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ सकल मनोरथ पूरवे ॥ ए देश ॥ चित्र घने संभूत ए, गजपुरमां विद्रत ए, महंत ए, दोइ मातंग मुनीश्वरा ए ॥ १ ॥ एकदिन तेहने वंदे ए, चक्री नियम निबंद ए, आणंदे ए, पटराणी पण वंदती ए ॥ २ ॥ नारी रयण ते दीवी ए, काम अभि अंगीठी ए, पईटी ए, मनमां ते सं नूतनें ए ॥ ३ ॥ चक्रतएं नियाण ए, करे ते अजाण ए, जाणए, चित्रे वा र्यो नवि रहे ए ॥ ४ ॥ चित्र नियाणां विशुद्ध ए, संभूतो मुनि विशु
ए, सुरद्धिए, जवि वीजे दोइ पामीया ए ॥ ५ ॥ त्रीजे जवि मुनि संभूत ए, चक्री थयो नरपुर हुंत ए, धन्यपूत ए, चित्र पुरिमतालेँ थयो ए ॥ ६ ॥ सुविदिताने ते अनुसरे ए, अनुक्रमे संयम आदरे ए, विचरे ए, एक दिन ते कंपिलपुरे ए ॥ ७ ॥ पुरकंपिलें दोइ जणा ए, यथा एकता ब हुगुणा, अति घणा ए, चक्री कहे सुख जोगवो ए ॥ ८ ॥ चित्र कहे लीजें दीख ए, ते न लहे चक्री शीख ए, सुपरिख ए, कर्मसणी जग एह वी ए ॥ ए ॥ चक्री पैठण ए, मुनि · निज पुण्य प्रमाण ए, जाए ए, उ तम पदवी पासीयो ए ॥१॥ विजयदेव पटधारक ए, विजयसिंह प्राजा त्रिक ए, वाचक उदय ए, कहे गुण मुनितला ए ॥ ११ ॥ इति ॥
॥ अथ चतुर्दश इकुकार कमलाध्ययन सद्याय प्रारंभः ॥
॥ देवतणी रे वाणी सुणी रे ॥ ए देशी ॥ देवतणी रुद्धि जोगवी रे, पुर इकुकार मजार || मोरा लाल रे ॥ मृगुः पुरोहित कुल व्याविया रे, सुर दो शुभ तिथिवार || मोरा० ॥ १॥ ते मुनि बालक बंदीयें रे ॥ श्रकणी ॥ मातपितानी साथ || मो० ॥ दिरक बेइ थया केवली रे, वली राणींन र नाथ ॥ मो० ॥ ० ॥ २ ॥ मावित्रे बीदावी या रे, ऋषि देखीता संत ॥ ॥ मो० ॥ एक दिन कृषि तेणे दीठडा रे, तरुतले आहार करंत || मो० ॥ ॥ ते ॥ ३ ॥ जातिस्मरण जाणीयुं रे, पूरवजव विरतंत ॥ मो० ॥ मात पिताने वूकवी रे, चारित्र तेह : लहंत || मो० ॥ तेषं ॥ 8 ॥ मातपिता