________________
ज्ञान विमलजी कृत शोख सुपननी सद्याय. (१५३)
॥ अथ श्री ज्ञानविमलजी कृत शोलसुपननी सद्याय प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ श्री गुरुपद प्रणमी करी, शोल सुपन सुविचार || दुःसम स मय तथा कहुं, शास्त्रतणे अनुसार॥१॥ शारद बुधदायी ॥ ए देशी ॥ ढाल ॥ पाडली पुर, नयरे, चंद्रगुप्ति राजान ॥ चाणायक नामें, बुद्धि निधान प्रधान || एक दिन सुखसेजें, सूतो रयण मजार ॥ तव देखे नरपति, सोल सुपन सुख कार || 5 || त्रुटक ॥ सुखकारक वरक दुःख केरां, निरखे नृप वडवखतें ॥ वाजी त्रतूरे जगतसूरें, घ्यावी बेठो तखतें ॥ चाणायक नायक मति केरो;
प्रणमे पाय || सोब सुपन रयणांतरें लाध्यां, ते बोले नरराय ॥ ३ ॥ ढाल ॥ धुरि सुहणे देखे, सुरतरु जांगी काल ॥ बीजे याथमीयो, सू रज विंव छाकाल ॥ श्रीजे चंद्रचालणी, चोथे नाच्यां जूत ॥ पांचमे बार फणालो, दीगेति ॥ ४ ॥ ० ॥ अति अद्भुत विमान वढयुं, ति म हे सुह देखे || कमल उकरडे सातमे, याउमे श्रगियो अंधारें पेखें ॥ सुको सरोवर नवमे, दक्षिणपासे जरी यो नीर ॥ दशमे सुहो सोवनथा बे, कूतर खाये खीर ॥५॥ ढाल ॥ गज छपर चढिया, वानर देखे इग्यार ॥ मर्यादा लोपे, सागर सुपन ए वार ॥ लोटे रथ जुता, वाडा तेरसे देखे ॥ कांखां तिमरणां, चउदमे सुपने देखे ॥ ६ ॥ ० ॥ तिम देखे पनर मे वृषनें, चढिया राजकुमार ॥ काला गज वेहुनाह मांदे, वढता सोल ए.सा र ॥ एड्वां सोल सुपन जे बाध्यां, संजारे नृप जाम || एहवे यावी दिये वधाइ, वनपालक अभिराम ॥ ७ ॥ ढाल || स्वामी तुझ वनमां, श्रुतसागर गुणखाणि ॥ वाद मुनीसर, चौद पूरबधर जाणि ॥ श्रव्या निसुणीने, वंदन काजें जाय || चाणायक साथै, नरपति प्रणमे पाय ॥ ८ ॥ ० ॥ पाय नमीने नृपति पूढे, सोल सुपन सुविचार ॥ कृपा करी जगवन् मुफ़ दाखो, एह करो उपगार ॥ तव गिरुआ गणधर, बोल्या नरपति आगें ॥ इसम या सुपननो, होशे बहुको बाम ॥ ए ॥ ढाल ॥ सुरतरु केरी शा खां जांगी, तेनुं ए फलसार जी ॥ आज पठी कोय राजा जावे, नही लिये संयम जार जी ॥ श्राथम्य सूरज बिंव काले, ते श्राश्रम्युं केवल नाए जी ॥ जातिसमरण निर्मल उहिण, मण पड़ाव नाण जी ॥ ॥ १० ॥ त्री जे चालणी चंद्र थयो जे, जिनमत एपिपरे होशेजी ॥ थाप उत्थाप करशे बहुला, कपटी कुगुरु विगोशे जी ॥ भूत नाच्या जे भूतले.
4