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(१०)
सद्यायमाला...
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॥ सा ॥१०॥ तस्सुत्तरी करणादिक चार, सकाएं आदिक पण सार काउस्सग्ग करतां ए हेतु नव, मनमां विचारे जे जन जब ॥ सा॥२॥ अन्नबणादिक बार आगार, आगल पणिंदीदण सार ॥ बोही खोजाईक कोय, शोल आगारें काउस्सग्ग होय ॥ सा॥१५॥ ..
॥ ढाल बीजी ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ हवे कहुं कालस्सग्ग जंगणीश दोष, ते टलता होये संतोष ॥ घोडग खय खंजा माल, उछ सुजट सलिण सुविशाल ॥ १॥ वदवानी परें खजा धरे, निक्षायादिको आश्य करे ॥ खंब थण जू संजश् वाथरस, कोठ सूक सुर कंप पहेस् ॥ ५ ॥ काउस्सग्ग दोष कह्या उंगणीश, ते टाली करीय सुजनीश ॥ दृष्टि पडिहण पहेली कही, सूत्र अर्थ तमु जय सदही ॥३॥ असोडा पकोडा करे, अणवार ऊर्फ श्रधाशुं धरे॥ समकित मिश्र मिथ्या मोह खरे, काम स्नेह दृष्टि राग परिहरे ॥४॥ त्रणवार विधानह संत, देव गुरु धर्म आदरवा खंत ॥ वली कुगुरू कुदेव । कुधर्म, परिहर, तुम जाणणे मर्म ॥ ५॥ ज्ञान दर्शन चारित्र आदलं, तेह विराधन टाली खरं ॥ मन वच काय गुप्ति श्रादरुं, मन वच काय दंग परिहरूं ॥६॥ पडिलेहण मुहपत्ति पणवीस, हवे बोर्बु काया पंचवीश ॥ हास्य रति अरति वामे जुनें, सुगंडा शोक जय दक्षिण जुनें ॥७॥ कृष्ण नील कापोत मस्तकें, बांगो रस शुछि गारव मुखें ॥ माया निदान मिथ्या त्रण्य शल्य, परिहरो हृदय मध्य त्रण शल्य ॥जा क्रोधमान माबे बाहु मूल, माया लोज दक्षिण लुज मूल । वाम पग पृथिवी जल तेल काय, वाउ वनस्पति त्रस दक्षिण पाय ॥ ए॥ए पडिलेहण मुनिने पचाश, श्रावकने मुहपत्तिनो नाश ॥ आगम निश्चय विधि भन धेरे, जाव क्रिया कीधे जव तरे ॥ १०॥ अहो काय काय ए त्रस, जत्ता जवणी जायं च ने त्रम । पहिले षद् बीजे षट् जाणं, वंदन बार बावर्च अहिनाणं ॥ ११ ॥ आदर रहित वंदे गुरु सार, जात्यादिक मद स्तब्ध अपार ॥ वांदण देनासे ततकाल, घणा मुनि वांदे समकाल ॥१२॥ तीड़ फाल देवंदन करे, अंकुश जिम उघो कर धरे । कछप चालें पुन वंदन करे, मत्स्य तणी पेरें पासु फरे ॥ १३ ॥ द्वेष जय मैत्री गारव कारणे, जानु उपर कर बे धारणे ॥ मुजने जंजे: एहबुं मन जाण, आहा |
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