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षडावश्यकनी सद्याय.
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पति, विधिसागर सूरिराया रे ॥ बुरहानपुर शहेरे गुरुमहेरें, चावप्रकाश में गाया रे ।। ते ॥ १० ॥ इति ॥
॥ कलश ॥ ॥ एम कह्या नावविचार सुंदर, जेहवा गुरुजि मुखें सुण्या | जिनराज वाणी हैये आणी, निर्जरा कारण थुण्या ।। सतर नय मद (१७७५) मास
आश्विन,सिद्धियोग गुरु वास रे ॥श्रीसूरिविद्यातणो विनयी, ज्ञानसागर सुख करे ।। १॥ इति श्रीपट्नाव अथवा नावप्रकाशः सद्याय समासः॥
॥अथ श्रीपडावश्यकनी सद्याय प्रारंजः॥ ॥ ढाल पहेली ॥ साहेवा मोतीडो हमारो ॥ ए देशी ॥ ॥श्रीसद्गुरुने सदा प्रणमीजें, पडिक्कमणानो सह खप कीजें ॥ साधु जी पडिकमणुं कीजें, मुनिजी परमारथ लहीजें ॥ स्याहाद मुडा चित्त धारी, पट् यावश्यक कीजें सुविचारी ॥ साधुजी० ॥१॥ अध्यातम मारग श्राचरी, सप्तनंगी नय मनमां धरियें ।। आवश्यक नियुक्त्यनुसार, करूं स्वाध्याय संदेपे सार ।। साधु॥॥ आवश्यकादि सहुना निदेपा, ते करतां नवि लागे लेपा । नाम स्थापना प्रव्य ने नाव, अनुपयोग उपयो गी जीव ॥ सा ॥३॥ क्षेत्रथकी जरतह ऐरावत, कालयकी संजप वित्त ।। पासवादिक संगति टाले, धर्मविना जय जाये आलें । सा॥४ ॥ पहेवू श्रीगुरुवंदन करता, आर्जवता मनमांदे धरतां ॥ करेमिनं हरि यावहि पडिकमिये, कृतकारि तनु पाप उपशमियें ॥ सा॥५॥ विधि परके पडिकमणुं सार, तिहां पहेढुं सामायिक धार ॥ चवीस. नामें वीय, चंदण पडिकमणुं चनविय ॥ सा ॥ ६॥ काउस्सग्ग ने बहुं प चरकाण, पट् आवश्यक आतम शुद्धि गण || नयनिक्षेप प्रमाणीने जा णी, निमित्त सहित करजो नवि प्राणी ॥ सा ॥ ७ ॥ मांदोमांहे अं गुल नेली सार. दोय हस्तनी कोशाकार ।। पेट उपर कोहणी संग्वीयें, योगमुसा चेत्यवंदन स्तवियें ॥ सा ॥ ॥ उनो अंतर पग अंगुल चार पुंठलथी कांश जणा चार ॥ एहवी कही जिनमुना. सार, हाथ प्रलंव उन्नत निरधार ॥ सा ॥ ए॥ शुक्तिसमा दो गर्जितहस्त, मुक्ताशुक्ति मुखा शस्त । ललाड खग्ग अलग्ग किंचित्त, नमोबुणं कही ग चित्त
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