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षट्नावनी सद्याय,
(३०)
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जिन ॥ ७॥ पूर्वोक्त तेरह मिश्रना, सघला अहावीश हो राज ॥ एनव मा गुण पद तणा, उत्तर नाव जगीश हो राज ॥ जिन ॥ ए॥ इति ॥
॥ ढाल सातमी॥ धन धन संप्रति साचो राजा॥ ए.देशी ॥
हवे दशमा गुणगण विषे सुण, उदय तणा नेद चारो रे ॥ लोन संजलण मणुग असिहता, लेश्या शुक्ल चित्त धारो रे ॥१॥ जय जय स्वामी वीर जिणेसर ॥ ए आंकणी॥जस वाणी अति मीठी रे॥ सुणतां शुजमति अंकुर विकले, निकसे धर्मति धीठी रे ॥ जय जय स्वामी वीर जिणेसर ॥२॥ उपशम समकित उपशम चारित्र, दायिक लमकित,एको रे॥नेद कहो तेर मिश्रना तेइज, वावीश सर्व विवेको रे ॥ जय० ॥३॥ उपशांतमाहें तीन उदयना, मणु नश्शुहर असिकोरे ॥ उपशमना वे नेद लहीजें, दायिक समकित प्रसिको रे ॥ जय० ॥५॥ चारित्र विर हित मिश्रना छादश, सहु मली वीश ए जाणो रे॥हवे छादशमे औदयि क नावना, एहज त्रण्य वखाणो रे।।जय॥५॥ क्षायिक समकेत दायिक चारित्र, पूर्वोक्त मिश्रना वारो रे॥सर्व मलीले एं गुणगणे, जंगणीश नेद विचारो रे ।। जय ॥६॥ तेरमे औदयिकना त्रेण तेहिज, झायिकना नव नेदोरे ॥ जीवपणुं पारिणामिक नावें, सहु मली तेर उमेदोरे ॥ जय॥७॥चउदशमे वेद जदयना, मणुष गश्ने असिको रे॥दायि कलावें नव निधि सम प्रगट्या, परिणामी जीव लीधो रे ॥ जय॥७॥ छादश नेद ए सर्व भलीने, चौदशमे गुणगाणे रे ॥ सिझने दश नेद ओदयिक विरहित, धारो ज्ञानी वाणे रे॥ जय० ॥ ए॥इति ॥
॥ ढाल आठमी ।। देशी मुमकानी ॥ ॥ वीर जिणेसर बालहा, अतिमीठी जस वाणि ॥ चतुर नर सांखो॥ हवे सुणो नाव विषे कहुं, गुणपदनुं वखाण ॥चतु॥१॥ मिथ्यात्वं मोह तणे उदें, पामे पढम गुणगण ॥ चतु ॥ औदयिक जावथकी होये, गुणपद पहेतुं जाण ॥ चतु॥२॥ पहेला कषायना उदयथी, चोथाथी पडे जेण ॥ चतु॥ वमतां सास्वादन लहे, औदयिक नावथी तेण ॥ चतु॥३॥ कोआचारज एम कहे,' पारिणामिकथी होय ॥'चतु०॥ पंचसंग्रह टीका तणो, एहवो आशय जोय ॥ चतु॥ ४ ॥ दायोपश मिक नावथी, लहे त्रीजु गुणगण ॥ चतुण्॥ प्रथमथी चढतो चोथाथी,
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