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(२०६)
सद्यायमाला ॥३॥. मिश्र तणा दश नेदज तेह डे रे, पारिणामिकना दोय ।। अजव्य पणुं मांहेथी टालीयें रे, सरवे बत्रीश होय ॥ नविण ॥४॥. मिश्रगुणग णे औदयिक लावना रे, विण अज्ञानी उंगणीश ॥ द्वादश नेद खउवस मना नण्या रे, पांच लब्धि सुजगीश ॥ नविण ॥५॥ त्रिक. दर्शन त्रण झान कह्यां जलां रे, समकित मिश्रज रूप॥पारिणामिकना नेद धिक व लीरे, तेत्रीश:सर्व अनूप ॥ नवि०॥६॥ अविरति सम्यग्दृष्टि गुणपदें रे, उंगणीश उदयना तेज ।। उपशम नावें समकित सुंदरु.रे, दायिक स मकित देज ॥नविण ॥७॥ पूर्वोदित वली द्वादश मिश्रना रे, दोय नेद परिणाम ॥ सर्व मलीने पांत्रीश ए थयारे, चङगतिना ज़स स्वामि॥नविण ॥७॥ देशविरतिविषे सत्तर नेद डे रे, औदयिक नावना धार ॥ देव निरय गश्बे ए काठीये रे, जवसम सम्यक्त्व विचार ॥ जविण॥ ए॥दा यिक जावें समकित जाणीये रे, पारिणामिकना दोय ॥ देशविरति युत तेरह मिश्रना रे, सहु मली चोत्रीश होय ॥ नविण ॥१०॥ इति ॥ 1. ॥ ढाल बही ॥ क्युं जाणुं क्युं बनी आवशे ॥ ए देशी॥ -- ॥ प्रमत्त संयत गुणपद विषे, दशपंच उदयना नेद हो राज ॥ असंब मताने तिरिय गश्, कीजें तास विछेद हो राज ॥१॥ जिनवचनामृत पी जीयें। ए आंकणी ॥ उपशम समकित सुंदरु, दयनावें समकेत हो राज ॥ मिश्रना तेरह नेद बे, सर्व विरति संयुत हो राज ॥ जिन ॥॥वीण मोह पर्यंत जाणीयें, पारिणामिकना दोय हो राज ॥ एटले सर्व मली थ या, बत्रीश जेद तुं जोय हो राज ॥ जिन ॥३॥ सातमे औदायिकलाव ना, द्वादश नेद प्रधान हो राज ॥ आद्य त्रिक लेश्या विना, उपशम समकित जाण हो राज ॥ जिन॥४॥समकित दायनावें हुवे, चउदश मिश्र प्रकार हो राज ॥ मनःपर्यव संयुत करो, ए थयात्रीश विचार हो राज । जिन ॥ ५॥ अपूरवकरण गुण आउम, दश नेद उदयना धार हो राज ॥ तेजो पद्मलेश्या विना, समकित उपशम सार हो राज ॥ ॥ जिन ॥६॥ दयनावें समकेत वरू, मिश्रना तेर जगीश हो राज ॥ मिश्रसमकेत ते टालीयें, सहु मली. सत्तावीश हो राज ॥ जिन ॥ ७॥ नवमे औदायिक नावना, पूर्वोदित दश नेद हो राज ॥ पागंतर (पूर्वोक्त तेरह मिश्रना) दायिक- सम कित-जाणीयें, उपशमना बे नेद हो राज॥
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