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(३०) . सद्यायमाला. हिक त्रिक चतु पंचनो संयोग ॥ तेहना थाये ब्बीस जेय, ते सानियां तिक ज्ञानी कहेय ॥५॥ ... . .॥ ढाल बीजी॥ सुमति सदा दिलमें धरो॥ ए देशी॥ .
श्रागमवाणी सांजलो, टोका ने नियुक्ति सुझानी ॥ नाष्य अने चूर्णी, वली, ए पंचांगें जुत्त ॥ सु०॥आगम० ॥१॥ ए आंकणी ॥ जेद कहूं। बए नावना, ते सुणजो एक चित्त ॥सुझानी। एकवीश जेद कह्या जला,
औदयिकजाक्ना मित्त ॥ सु०॥ था॥शा मिथ्यात्व मोहतणे उदें, होय अज्ञानी जीव ॥ सु॥श्राठे कर्म उदयें करी, असिझता होय सदीव । ॥सु०॥आ॥३॥ बीजी कषायनी चोकडी, तेहनो उदय जव पाय॥ ॥ सुप अविर तिता होय जीवनें, जेद त्रीजो चित्त लाय ॥ सुगावात ॥४॥ योगजनक कर्मने उदें, खेश्या प्रगटे बक ॥ सु॥ किल. नील कपोत ए, तेज पठमा सुक्क।। सु॥था ॥५॥ क्रोध मान माया के ली, लोज त्रयोदश बेद ॥ सु०॥ निरय तिरिय मणु सुरगई,. श्छी पुरुष । नपुं वेद । सु॥था ॥६॥ वली कही मिथ्यात्व मोहनी, ए थया । एकवीश नेय ॥ सु॥ उपशमना बे द डे, ते कहुं चित्त धरेय ॥ सु॥ आ॥७॥ दर्शन मोह उपशमथकी, उपशम समकित होय ॥ सु०॥ ॥ चारित्रमोहने उपशमें, उपशम चारित्र होय ॥ सु॥ ॥॥ नेद ए उपशमना जएया, ते चित्तमाहें धार, ॥ सु॥ परमानंद पद पायें, लहीयें ज्ञान अपार । सु॥ श्रा॥ए॥इति ॥
ढाव श्रीजी ॥ रसीयानी देशी॥ ..!! ॥जेद सुणो नव दायिक नावना, केवल दर्शन शान ॥ सुगुणनर ॥ दायिक समकेंत श्रीजो जाणिये, अहकाय चरण प्रधान ॥ सु०॥१॥ धन धन जिनवर वचन सोहामणां । सशुरुथी लहीये तेह ॥ सु०॥ जेम रयणायरमांथी पामी, रब अमूलक जेद ॥ सु॥ध॥ २॥ दान | लकिने लालकि वती, जोगबकि उपजोग ॥ सु॥ वीर्यलहिए। नव नेदें अयो, क्षायिकनावनो योग ॥सु॥धन ॥३॥ नेद अढार खजवसमना नण्या, मति श्रुत अवधि सुज्ञान ॥ सु०॥ मनःपर्यव वली झान सोहामधूं, म सुथ उही कुज्ञान, ॥ सु॥धन॥४॥ चतु अचस्कु उही दंसंणा, दानादिक पण सहि ॥ सुक्षयोपशम समकित
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