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षट्नावनी संद्याय.
(२०३)
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| मे गुरुजय जयन्यो जी, कहेशे नरकनां दुःख ॥ के कहेशे केम नाविया जो, पामशो कहो केम मोद ॥सोकाए। नवमे देहरे आवतां जी, दाखवे शोक विशेष ॥ घरनां कारज सवि करें जी, धर्मनां काज उवेख ।। सोका॥रणा अज्ञान दशमे काठिये जी, देवतंत्र गुरुतत्त्व ॥ धर्मतत्व गुरु सददो जी, एम आणे मिथ्यात्व सो॥का १९॥ अव्याक्षेपक अ ग्यारमे जी, ऊलपलतो दिन रात ॥प्राणीधर्म न जलखे जी, समकाव्यो बहु जात ॥सोणाकाणारशा बारमे धर्मकथा तजी जी, कौतुक जोवा जा य ॥ रात दिवस उजो रहे जी, नयणेनिंद न जराय सोगका ॥१३॥ विषय तेरमो काठियो जी, विषयगुंराता लोकं । विषय साकर लेखवे जी, अवर सवे जी फोक ॥
सोकागार ॥ सिहत्र जातांथकां जी, कावि या ए अंतराय ॥ अव्य नावथी टोलिये जी, तो मनोवंड़ित थाय ॥सो ॥का ॥२५॥ तेर काठिया जिने कह्या जी, समजी वर्जी एह ।। कुशल सागर वाचक तणो जी, उत्तम कहे गुणगेह । सो ॥ का ॥१६॥ इति॥
॥अथ श्रीषट्लावनी संधाय प्रारंजः॥
॥ ढाल पहेली ॥ चोपाश्नी देशी॥ ॥श्री सदगुरुना प्रणमी पाय, सरसति सामिणी समरी माय ॥बए नावनो कहुं सुविचार, अनुयोगहारतणे अनुसार ॥१॥ पहेलो जाणो औ दयिक नाव, बीजो कहियें उपशम चाव ॥ त्रीजो दायिक नाव पवित्र, चोथो उवसम नाव विचित्र ॥२॥ पारिणामिक ते पंचम जाण, बहो सां निपातिक सुवखाण ॥ एहनो अर्थ यथारथ कहुं, जेहवो गुरु आगमथी लढुं ॥३॥ उदयावलीमां आव्यां जेह, कर्मदलिक जोगवी तेह ॥ जेम गति स्थित्यादिक पर्याय, तेहथी थयो ते औदयिक नाव ॥४॥ रस प्रदे श वेदन जिहां नही, सत्तामांहे सर्वे'सही निस्मे आहादित जेम आग, तेम औपशमिक कह्यो वडनाग ।। ५॥ उदये आव्यां डे जे कर्म, क्षय की जे तेहनो गत नर्म ॥ जेम खपुष्प अत्यंतालाव, तेहथी उपनो दायिक जाव ॥६॥ उदयागत दलियां संघात, पुजल वेदे तिहां विख्यात ॥ मिश्र लाव परिणमीयो जेण, दायोपशमिक कहीयें तेण ॥७॥ जीव अजी डूं नव नव पणे, परिणमवू थाई विधि घणे ॥ जेम रेविनो उदयास्त व नाव, तेथी थयो पारिणामिक नाव ॥ ७॥ ए जे नाव पंचनो योग,
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