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________________ (१०१.) सद्यायमाला. '' शरीरी बे पण तेह || जावि० ॥ १० ॥ दीक्षा लेतां सुर दीये रे शीख, वसर नहिं तुक नंदीषण दीख 11 जावि० ॥ बार वरस रह्यो गणिकाने गेह, जोग कर्मै दीधो नहिं बेह ॥ जावि० ॥ ११ ॥ चउदह सय बावन गणधार, तेमां गौतम लब्धिजंकार ॥ जावि० ॥ जे दिरके ते पट्टेला मुक्तेंरे जाय, पढी पोताने केवल थाय ॥ जावि० ॥ १२ ॥ एम अनेक सं बंध अपार, समजो सहुको हैडा मकार ॥ नावि० कोडी सया बुझें कर जोड़े, पण जाविनी न करे कोइ होड | जावि० ॥ १३ ॥ उद्यमने जा विने श्रायत्त, जावि करे उद्यमनी जीत | जावि० ॥ मुनि चंद्र एणि परें बोले पगार, शास्त्र उपरें की धो अधिकार ॥ जावि० ॥ १४ ॥ इति ॥ ॥ अथ सुगुरु गुणनी सद्याय प्रारंभः ॥ ॥ • ॥ पंच महाव्रत सुधां पाले, अंतरंग मल टाले ॥ व्रत दूषण कण कण संभाले, ज्ञान क्रिया अजुवाले ॥ १ ॥ सुसाधु गुरुशुं मेरो मन माने ॥ ए की || आगम कसतां जे कस पढ़ोंचे, ते कंसने गुरु माने ॥ सोना ती परें जे कस पहोंचे, दिनदिन चढते वानें ॥ सु० ॥ २ ॥ सूत्र अर शुं प्रीत करीनें, आपणहुं मन रहे || उजयकाल जे नाजन उपकरण, संजाली पडिलेहे ॥ सु० ॥ ३ ॥ खरारे बपोरे अतिथिनी वेला, गोचरीयें मुनि जावें ॥ निषण आहारादिक न मले, तो मन ऊणो न यावे ॥ ॥ सु० ॥ ४ ॥ अणगालादिक डूषण पांचे, जोजन वेला टाले || आवे प्रवचन माता निरतें, जयणाशुं प्रतिपाले ॥ सु || २ || कर्मकथा जे | वकथा चारे, आपणथी न प्रकाशे । लोकतणा जे वचनपरीसह, ते मनमांदे दिया | सु० ॥ ६ ॥ धर्मतणुं कांछ कारण जाणी, निज श रीर पण ढंके ॥ उपसर्गादिक यावे हूंते, व्रत पञ्चरकाण न खंके ॥ सु०॥ ७ ॥ काल प्रमाणे संयमनें खप, जोईने गुण लीजें ॥ विनय विमल पंक्ति एम बोले, तसु पाय वंदन कीजें ॥ सु ॥ ८ ॥ इति ॥ ॥ अथ मूर्खनी सद्याय लिख्यते ॥ A ॥ मायाने वश खोटं बोले, पुण्यनी वात बिगाडे रे ॥ उंमा जलमां जे. नर पेसे, बीजाने बूझाडे रे ॥ १ ॥ मूरखडां लोको श्रम अनुजव जाणो ॥ ए की ॥ चूवा चंदन अंग लगावे, जे नर हींने आबा रे | तेहनुं जल पण तो हुं जाएं, जो जमने वाले पाढा रे ॥ मू० ॥ २ ॥
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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