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सद्यायमाला.
धने को हैडे धरे ॥ २ ॥ बाण कापड पापडने वडी, नव जग विये देहरे वडी ॥ शिर कर अंग पखाले पाय, विंकणे करी विंजावे वाय ॥ ३ ॥ ना ख्यानख निमाला पली, नाभर छत्र ढलावे वली ॥ माथे मुगुट पगे खासड़ां, धवराव्यां देहरे वाडां ॥४॥ दोरजरे पेहेरे चाखडी, नाखी गड गुंबड खाल 'डी || बेशे पगऊपर पगकरी, रांध्युं अन्न अंगीठी करी ॥ ५ ॥ रगत पित ना ख्या श्रोघला, नकरे निंद्या जुमानला ॥नकरे वणिज न रमे जूबटे, नलिये बस्तु आलट पालटे ॥६॥ खाय तंबोल नखी सुखडी, करे नित्य ते लहुडी ast | पग चंपावे कलदो करे, दिये सराप के होडज धरे ॥ ७ ॥ नाखे पं गरज सुये निशंक, जंगकला ने मारी ढंक ॥ नकरे जोजन नहि फीलं, वेणसमारे पारिख पएं ॥ ८ ॥ पढे मंत्र राखे हथियार, खोरी करे ने ये तु कार ॥ सचित्त न राखे न दिये गाल, नकरे बालक स्त्रीनी घ्याल || पानक |रे वैडुं नकरे होड, जिनदीवे न करे करजोड | आठपडो न कस्यो मुखको ष, विष उत्तरासंग लागे दोष ॥१॥ पहेरे धोती शान विणजेह, बेठापग पसारी बेद || नकरे उगाने हासुं वली, दांत न खोतरे लेइ शली ॥ ११ ॥ बकरे दात विकथा वात, नकरे क्रोध वली उत्पात ॥लीधा शाक नीलां मनरली, स्त्री संघातें बेवामली ॥ १२ ॥ की धो दीवो देहरा थकी, वस्तु वावरीजे देवकी ॥ नखमां नवि राखे दीवेल, दीवे नवि पूरी जे तेल ॥ १३ ॥ चालस मोडे दीले बहु, आशातना ए जाणे सह ॥ श्राशातनाना बहु ला पाप, जे करशे ते लेहशे संताप ॥ १४ ॥ श्रीविजयसेन तणो अधिका जिन सेवाथी लढे जवपार ॥ पंकित राज विजय इमजणे, श्रीजिनवर ने जाउं जाम ॥ १५ ॥ इति प्रशासनावर्जन सद्याय समाप्तः ॥ ॥ अथ संसारस्वरूपनी सचाय || मधुबिंडुनी ढाल ॥
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॥ संसारे रे जीवानंत जवे करी, करे बहुला रे संबंध चिहुंगति फरि फरी | नवराखेरे कोने तवनिज करधरी, सगाई रे कहो कि पिपरे क |: हियें खरी ॥ १ ॥ त्रुटक || कहो खरी किणि परी एह सगाई, कारमो संब धए ॥ सवि मृषा माता पिता बहिनी, बंधुतेद प्रबंध ॥ धरि तरुण घरणी 'रंगे परणी, त्राण कारण ते नहीं ॥ मणि कणग मुत्ति धन्न धान्यकण, संपदा सब संग्रही ॥२॥ ढाल || एह यावर रे जंगम पातिक दोइ कला, जेह करतां रे चलग दुख जीवे सह्या || तेह टालो रे पातिक दूरे वि