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संद्यायमाला..
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णी नरे, ते पाणी देहरासरे चडे ॥ बोधबीज नवि पामे किमें, श्रासातन थी बहुलव नमेए॥असंकाश्मां जिमवा धसे, विचे बेसीने मनमा हसे ॥ पोतसवे अनडावी जिमे, तेणे पापे पुर्गति पुःखखमे ॥१०॥ सामा यक पडिकमणुं ध्यान, असफाईये नवि सूफे दान सिकायें जो पुरुष आजडे, तिणे फरसे रोगादिक नडे ॥ ११ ॥ रुतुवंती एक जिनवरनमी, तेणे करमे ते बहुजव जमी। चंकालपी थई ते वली, जिन सातन तेह ने फली ॥ १२॥ एमजाणी चोखाई जजो, अवधि पासातन दूरे तजो॥ जिनसासन किरिया अनुसरो, जेम नवसायर हेला तरो॥१३॥ श्रमायु सेवा विधिसार ॥ अनुष्ठान निजशक्ति अपारव्यादिक दूषणं परिहरो, पक्षपातपण तेहनो करो ॥१॥धन्य पुरुषने होयविधि जोग, विधिपक्षारा धक सविनोग ॥ विधि बहुमानी धन्य जे नरा, तिमविधि पक्ष अदूस्सग खरा ॥ १५ ॥थासणसिहते होवे जीव, विधिपरिणामी होये तसपीव ॥अविधि आसातन जे परिहरे, न्याये शिवलाही तस वरे॥१६॥इति॥
॥अथ श्रीयशशिष्यकृत सुगुरुनी सद्याय प्रारंज ॥ ॥ ढाल पहेली ॥रुषजनोवंश रयणायरू॥ए देशी॥ सदगुरु एहवा सेवि ये, जे संयम गुण राता रे॥नजसम जगजन जाणता, वीरवचनने ध्या तारे॥१॥सदगुरु एहवा सेविये ॥ए आंकणी ॥ चार कषायने परिहरे, साचूं सुजमति ना रे ॥ सजस वंत अकिंचना, संनिधि कांई न राखेरे ॥ स ॥२॥आणिय जोजन सूफतूं, साहमीने देश जूंजे रे ॥ कलहक था सविपरिहरे, श्रुत सद्याय प्रयुंजे रे ।। स॥३॥ कंटक गाम नगर त णा, सम सुख मुख अहिआसे रे॥ निरनय हृदय सदाकरे, बहुविध तप सुविलासे रे ॥ स०॥४॥ मेह मेदिनी परें सवि सहे, काउस्सग्गें परि तापो रे ॥ खमिय परीसह उझरे, जाति मरण जय व्यापो रे ॥ स॥ ॥५॥ करे क्रम वचन सुसंयता, अध्यातम गुणलीना रे॥ विषयविनूति न अनिलषे, सूत्र अरथ रस पीना रे ॥ स॥६॥ एह कुशील न श्म कहे, जेहथी परजन रूपेरे॥जातिमदादिक परिहरी, धरमध्यान विषे रे॥सणा॥ श्राप रहे व्रतधर्ममां, परने धर्ममां थापे रे ॥ सर्व कुशीस स क्षण त्यजी, बंधन जवतणा कापेरे॥सणाजाअध्यने कह्या गुण घणा, दश वैकालिक दशमे ॥कंचन परेंतेह.परखीये,एकालें पण विषमें रे।।सणाए।
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