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सद्यायमाला. .
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त्र तणा अक्षर सांजलो, वेर विरोध सवि पूरे हरो ॥७॥ जणो जक्तामर गणो नवकार, अजियसंतो गणजो त्रण वार ॥ इरिया वहिया तसउत री, लोगस उजोयगरे नणजो खरी॥ ए॥ पhषणमां पाले हरी, रोग शोग तस जाये फरी ।। पyषणमां पाले शील, तस घर होवे बहुली लील ॥१०॥ पhषणमां दीजें दान, तसघर होवे नवे निधान ॥ श्रावक धर्म, वडो संसार, एड्बु जाणी करजो नरनार ॥११॥ श्रावक धर्मथी पूरण शेठ, स्वयंपद पोहता मुक्ति ठे॥ एधर्म कीधो वीर वर्धमान, जिणे जु दीधा वरसी दान ॥ १५ ॥ सद्याय जणतां ए फल सोय, शेत्रुजय यात्र तणां फल होय ॥ आबु अष्टापद गिरनार, शेजेजे जश्करो जूहार ॥१३॥ नंदीसर सीमंधर स्वामि, अढी हिपमा उत्तम गम॥ सुदर्शन शेठे काल लग्ग कियो, शूली फीटी सिंहासन हुयो ॥१४॥ चोवीश जिणवर थाप्या रूप, वंदन आव्या मोटा नूप ॥ महिमा सागर गहिर गंजीर, निर्मल शी ल गंगानुं नीर ॥ १५॥ तपगठमांहें गौतम खामि, शील सुधर्मा थूलिन नाम ॥श्रीविजयाणंद सूरिश्वर राय, तसुपय जगवल गुण गाय॥१६॥
॥अथ श्री उमदनी सद्याय प्रारंजः॥ . . . ॥क्रीडा करी घरे आवीयो॥ ए देशी ॥ मदाप महा मुनि वारियें, जे उरगतिना दातारो रे॥श्रीवीर जिणेश्वर उपदेस्या, नाखें सोहम गण धारो रे ॥ मदः॥१॥हांजी जातिनो मद पहेलो कयों, पूर्वे हरिकेसियें कीधोरे ॥माल तणे कुलें उपनो, तपथी सवि कारज सीधो रे ॥मदा ॥॥ हांजी कुलमद बीजो दाखियो, मरियच जवे कीधो आणी रे॥ कोडा कोडी सागर नवमां जम्या, मद म धरो एम मन जाणी मदः. ॥३॥ हांजी बलमदथी मुख पामिया, श्रेणिक वसुजूति जीवो रे ॥ऽख नरक तणां जश् जोगव्यां, मुख पाडतां नित रीवो रे ॥मद०॥४॥सन तकुमार नरेसरू, सुर आगल रूप, वखाएयो रे॥रोम रोम काया बिगडी गई, मद चोथानो ए टाणो रे॥मद०॥५॥ मुनिवर संयम पालतां, तपनो. मद मनमांहे आव्योरे॥ थया कूरगड रुषीराजिया, पाम्या तपनो अंतरा योरे॥ मद॥६॥ हांजी देश दशारणनो धणी, राय दशार्पन अनि मानी रे ॥ इंजनी कि देखी बुजिया, संसार तजी थया ज्ञानी रे॥ मद०॥७॥ हांजी थुखिन विद्यानो कस्यो, मद सातमोजे उखदाई
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