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हित शिक्षानी सद्याय.
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| बे दीयरियानो राग जो, तेथे कहुं गंधक यंगकूलना नाग जो, अगनी पडे. पण विष वमीयुं चूसे नहीं जो ॥ ३२ ॥ चूसे नहीं तिरजंच पशु वि ख्यात जो, तेथी को हुं नर क्षत्री आत जो, तुं गुरु माता वात किहां करसो नहीं जो ॥ ३३ ॥ करशो नही पण जाणे जिनवर ग्यानी जो, ग्या नी श्रगल वात न जगमां बानी जो, प्रभु पासे झालोयण लेइ निरमल धतुं जो ॥ ३४ ॥ निरमल थावा जइशुं प्रभुनी पासे जो, मिठामि डुक्कड करी तुमशुं शुभ वासे जो, कूप पडतां तुमे कर काली राखियो जो ||३५|| राखे तस पोतानो मुनिराया जो, स्वामी सहोदर मात शिवाना जाया जो, रहेनेमी संयमे वरीया इस सांजली जो ॥ ३६ ॥ सांजली जश् प्रजुच रणे सीस नमावी जो आलोयण लेइ उज्वल जावना जावी जो, केवल पामी शिवपदवी वरिया सुखे जो ॥ ३७ ॥ सुखे रहि घरमा सय वरस ते च्यार जो, एक बरस ब्रह्मत्था राजूल नार जो, एक विद्वणां पांचसें वरस ज केवली जो ॥३८॥ केवली थइने विचरयां देश विदेश जो, बहुजन ता स्या देई वर उपदेश जो, शिवसुख सचायें पोढ्या गुरु लघुगुणे जो ॥३ए || गुणेकरी दोइ गाया सुणजो सयगा जो, एक एक गाथा अंतर वेदनां वयणा जो, श्री शुजवीर विवेकी नित्य वंदन करे जो ॥ ४८ ॥ इति ॥ अथ हीत शिक्षोपदेश सद्याय ॥
॥ प्रथम प्रमुं सरसतीपाय, आढी वाणी यो मुजमाय ॥ तुम प्रसादे द्यो सजाय जणं, देशत फल दियडें धरूं ॥ १ ॥ चतुर चोमासुं नाव मास, स संघकेरी पूरे यश || वर्ष दिवस दिन त्रण से साठ तेमांथी काढ्या अरिहंते या ॥ २ ॥ अनंतकोटि हुवा केवली, तिथे पर्यापण कीधा वली ॥ पर्व वडो पर्युषण तो, दान पुण्य हुए अतिघणो ||३|| सांतेलांने उप वास, कोइ पञ्चखे मास || पोशा पडिकमणां जावे करो, जव जव पातिक दूरे हरो ॥ ४ ॥ देहरे जश्नें वांदो देव, साधु ती नित करजो सेव ॥ चैत्यवंदन करजो चित्त लाय, तेथी पाप खेरु रे थाय ॥ ५ ॥ सत रनेदी नवि पूजा करो, धूप दीप ले आगल धरो || केसर चंदन अगर कपूर, प्रतिमा पूजो उगते शूर ॥ ६ ॥ जो स्नात्र मंगल यारती, कल्प सूत्र वांचे तिहां यती ॥ ऊवर तणो हर्ज ऊमकार, वाजां वाजे यांनेक प्रकार ॥ ७ ॥ करो गुरु आगल गुंहली, गावे नारी मन दियडे घरी ॥ सू
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