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________________ आत्मशिक्षानी सद्याय. - -- - - - am-- - - ।। १०॥ सरल स्वजाव जाव मन रूडो, न करे वाद विवाद जी ।। चार कषाय करमना कारण, वरजे मद उनमाद जी॥सु०॥ ११॥ पापस्थान अढारे वरजे, न करे तास प्रसंग जी ।। विकथा मुखथी चार निवारे, स मिति गुपतिशु रंग जी ।। सु॥ १२ ॥ अंग उपांग सिझांत वखाणे, ये सूधो उपदेश जी ।। सूधे मारगे चाले चलावे, पंचाचार विशेष जी।सु० ॥ १३॥ दशविध यति धर्म जिन नांख्यो, तेहना धारण हार जी॥धरम थको जे किमहीन चूके, जो होये कोडि प्रकार जी ॥ सु०॥ १४॥ जीव तणी हिंसा जे न करे, न वदे मिरषावाद जी॥ तृण मात्र अण दीधुं न लीये, सेवे नही अब्रह्म जी ।।सुगा १५॥ नवविध परिग्रह मूल न राखे, निशि जोजन परिहार जी॥ क्रोध मान मायाने ममता, न करे खोज ल गारजी। सुम् ॥१६॥ ज्योतिष आगम निमित्त न नांखे, न करावे आरंभ जी ॥ औषध न करे नाडी न जूवे, सदारहे निरारंज जी। सुारणामा किणी शाकिणीनत न काढे, न करे हलवो हाथ जी। मंत्र यंत्रने रा खडी करी ते, नवी आपे परमार्थ जी ॥सु०॥ १७॥ विचरे गाम नगर पुर सघले, न रहे एकण गम जी॥ चोमासा ऊपर चौमासुं, न करे एक ण ग्राम जी ।सु० ॥रणा चाकर नफर पासे नवि राखे, न करावे कोश का जजी ॥ न्हावण धोवण वेस वनावण, न करे शरीरनी साज जी॥ सु०॥ ॥२०॥ व्याजवटानुं नाम न जाणे, न करे वणज व्यापार जी॥धर्म हाट मामीने वेग, वणिज डे पर उपगार जी ।। सु॥१॥ ते गुरु तरे अव रांने तारे, सायरमां जिम जिहाज जी॥ काष्ट प्रसंगें लोह तरे जिम, तेम गुरु संगते पाग्य जी ।। सु॥२॥ सुगुरु प्रकाशक लोचन सरिखा, ज्ञान तणा दातार जी ॥ सुगुरु दीपक घट अंतर केरा, दूर करे अंधकार जी॥ सु० ॥३॥सुगुरु अमृत सरिखाशीला, दीये अमरगति वास जी।सुगुरु तणी सेवा नित्य करतां, बूटे करमना पास जी ॥सुणारा सुगुरु पचीशी श्रवण सुणीने, करजो सुगुरु प्रसंग जी ॥ कहे जिनहरख सुगुरु सुपसायें, झान हरख उबरंग जी।सु॥३५॥ इति श्री सुगुरु पच्चीशी समाप्त ॥ ॥अथ आत्मशिदा सद्याय॥राग रामग्रीमा । सहेजानंदीनी देशी॥ ॥आतमरामें रे मुनि रमे, चित्तविचारीने जोय रे ॥ ताहारं दीसे न कोय रे, सहु स्वारथी मट्युं तोय रे, जन्म मरण करे लोय रे, पूठे सवि -- - - - - A me - । - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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