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सद्यायमाला..
त जो ए ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ २५ ॥ इति श्रीमानवज़व दश दृष्टांताधि कारे जूवटनामा चतुर्थ दृष्टांतस्वाध्यायः समाप्तः ॥ ४ ॥ -
॥ अथ रयणराशिनामा पंचमदृष्टांतः स्वाध्याय प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥
॥ अचिंत्यो नरजव लह्यो, घूणाकरने न्याय ॥ गिरिस रिडुप्पलत णि परें, कर्मनृपति सुपसाय ॥ १ ॥ विष्णु धर्मै जव हारियो, जिम जूधारी दाय ॥ वे हर्षे धन ग्रही, धन खोईने जाय ॥ २ ॥ रयणरा झिनो पंच मो बोलुं हुं दृष्टांत ॥ बंधन त्रोडे कर्मनां, जिम जलकृमि जलकांत ॥ ३ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥
॥ चालनी देशी ॥ जरत विभूषण उझितडूषण, 'नयर सुकोशल नाम ॥ सुंदर मंदिर मंदर गिरिसम, सोहे धवलित धाम || अतिधनवंत महंत गुणाकर, रत्नाकर इति नाम ॥ विवसे विकसे संपद सुखशुं, जिम माधव आराम ॥ १ ॥ देश विदेशें नयरें निवसर, विविध रयणनी जाति ॥ दाय उपाय करी ते मेली, जिम जलनिधि जल जाति ॥ राज परिदानी गिरि परे मानी, बेटा महोटा तास | एक दिन कुलधज कोटिध्वज घर, देखें केतु विलास ॥२॥ गज त्यारे एम विचारे, नहि सारे अम तात || निर्धन सयपतणी परि रयर्णे, नोहे धन विख्यात ॥ अंतर्वाणीनी जिम वाणी, न वि जाणीजें के || केवल घटदीपकपरि निःफल, बहुपरि रयण धणेण ॥ ३ ॥ इम चिंतवतां तात तेहनो, धन मेलणने काज बोजाच्यंतर दूर देशांतर, चढियो चतुर ऊहाज || उछृंखल तस पाबल अंगज, वेचे रयणां मूले || ठेधिके दशदिशि वेश्या, जिमवातूली तूले ॥ ४ ॥ रयणराशि लोपी आरोपी, धज पल्लव निज वास ॥ कोटिध्वज निज नाम धरावी, पूरी निजमन यास ॥ वात सुखी ने तात पधास्यो, वास्या अंगज ते ॥ धजपट घर घट ऊपर देखी, चटपटि लागी देहं ॥ ५ ॥ रे अज्ञानी बाला' व्याला, परनाला विनीत ॥ धन तरुकंद कुदाला दाला, विणसाड घर सूत || परें हांकी बाहिर काढ्या, थंगज यही यही बांहि ॥ रयण राशि दिशि दिशिषी आणो, तो वो घरमांहि ॥ ६ ॥ निज बांके ते रंक तिथी परें, पुहवीमंगल फिरतां ॥ कुटिलसुनावें रयण अजावें, बहु दुख