________________
प्रेमी-अभिनवन-पथ इतना ही नही, यह जाहिर करने के लिए कि उनका नन्हेलाल के साथ पहले जैसा ही सवध है, प्रेमीजी लगभग एक मास देवरी जाकर रहे ।
प्रेमी जी अतर्जातीय विवाह का भी आन्दोलन करते थे। जिस प्रकार विधवा-विवाह सवधी अपनी मान्यता को अमली जामा पहनाने का प्रश्न उनके सामने रहता था, उसी प्रकार अन्तर्जातीय विवाह सवधी अपनी मान्यता को भी व्यावहारिक रूप देने के लिए वे उत्सुक थे। अत जब उनके पुत्र स्व० हेमचन्द्र के विवाह की बात आई तो उन्होने इच्या प्रकट की कि उसके लिए परवार-समाज से बाहर की लडकी देखी जाय । लेकिन प्रेमीजी के मित्रो का आग्रह हुआ कि शादी परवार लड़की से ही की जाय। इससे विधवा-विवाह के विरोधी लोगो को पता लग जायगा कि वे चाहे जितना विरोध करें, चाहे जितने प्रस्ताव पास करें, लेकिन समाज विधवा-विवाह करने वालो के साथ है।
प्रेमी जी बडे असमजस में पडे । एक ओर तो अपने सिद्धातो की रक्षा का प्रश्न था और दूसरी भोर यह प्रमाणित करने का प्रलोभन कि समाज विधवा-विवाह के समर्थको के साथ है। बहुत सोचा-विचारी के बाद उन्होने यही निश्चय किया कि परवार कन्या के साथ ही शादी की जाय और दमोह के चौधरी फूलचद जी की लडकी के साथ सगाई पक्की कर दी।
जब यह समाचार बबई पहुंचा तो प्रेमी जी के एक अत्यन्त श्रद्धापात्र पडित जी ने परवार-समाज के एक नेता को लिखा कि आपको इस बात का प्रयत्ल करना चाहिए कि प्रेमीजी के समधी को भी विरादरी से अलग कर दिया जाय और शादी में परवार-समाज का एक बच्चा भी शामिल न हो। इस पर उन्होने विशेष रूप से दौरा करके सागर, दमोह और कटनी आदि की पचायतो में प्रस्ताव पास कराए कि शादी में कोई भी सम्मिलित न हो , लेकिन इसका कोई भी परिणाम न निकला। समाज और बाहर के कई सौ प्रतिष्ठित व्यक्ति सम्मिलित हुए और विवाह बडी धूमधाम से सम्पन्न हुआ। विरोधी मुंह ताकते रह गये । वम्बई | -