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प्रेमी-अभिनवन-ग्रंथ
ऊ-जतारा के सरोवर का एक दृश्य ओरछा-राज्य में लगभग नौ सौ तालाव है। कई तालाव तो बहुत बडे है । प्रस्तुत चित्र में जिस तालाव का दृश्य दिखाया गया है, वह राज्य के वडे तालावो में से एक है। इसके किनारे पर जतारा का विशाल किला है। उसके ऊपर चढ कर देखने से तालाव का दृश्य वडा सुन्दर दिखाई देता है । इस तालाब के जल से काफी भूमि की सिंचाई होती है।
ए-कुण्डेश्वर का जल-प्रपात ___इस चित्र में जमडार नदी से निर्मित जल-प्रपात का दृश्य उपस्थित किया है। वर्तमान ओरछा-नरेश के पितामह ने लाखो की लागत से इस प्रपात तथा इसकी निकटवर्ती कोठी का निर्माण कराया था। वडा ही मनोरम दृश्य है । इसके नजदीक शिव जी का सगमरमर का मदिर है। यह स्थान बुन्देलखण्ड का तीर्थ माना जाता है । कहा जाता है कि वाणासुर की कन्या उषा यहाँ आकर शिवजी पर जल चढाया करती थी। प्राकृतिक एव धार्मिक दृष्टि से यह स्थान वडा महत्व-पूर्ण है।
१७-अहार का एक दृश्य बुन्देलखण्ड का यह गौरवशाली तीर्थ अहार ओरछा-राज्य की राजधानी टीकमगढ से लगभग १२ मील पूर्व में स्थित है। ग्यारहवी-वारहवी शताब्दी की ढाई-तीन सौ प्रतिमानो का वहाँ पर सग्रह है। भगवान शातिनाथ की मूर्ति के शिलालेख से पता चलता है कि प्राचीन काल मे वहां पर 'मदनेशसागरपुर' नामक नगर था, जो कई मील के घेरे में वसा था।
___ इस समय वहां पर दो मदिर और एक मेरु है तथा पाठशाला और क्षेत्र के कुछ कमरे । प्रस्तुत चित्र में दोनो मदिर दिखाई देते है । दाई ओर का मदिर प्राचीन है और उसमे शातिनाथ भगवान की अठारह फुट की अत्यन्त भव्य और मनोज्ञ मूर्ति है। दूसरा मदिर उतना पुराना नहीं है।।
प्रतिमानो को व्यवस्थित रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए वहां पर एक संग्रहालय का निर्माण हो रहा है। उपलब्ध मूर्तियो में 85 फीसदी पर शिला लेख है, जिनसे इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण वातो का पता चलता है। अहार प्राकृतिक सौंदर्य का भण्डार है।
१८-भगवान शातिनाथ की मूर्ति भगवान शातिनाय की इस अठारह फुट की प्रतिमा के कारण प्रहार का गौरव कई गुना बढ़ गया है । इस भव्य मूर्ति का निर्माण सम्वत् १२३७ मे पापट नामक मूर्तिकार ने किया था। इसके प्रासन पर जो शिला-लेख दिया हुमाहै, वह एतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है । उससे पता चलता है कि यह प्रतिमा चन्देल नरेश परमद्धिदेव के राज्यकाल में तैयार हुई थी। श्री नाथूराम जी प्रेमी का कथन है कि इस जैसी भव्य, सौम्य और सुन्दर प्रतिमा उन्होने आजतक नहीं देखी। महान् शिल्पी पापट ने सुप्रसिद्ध गोम्मटेश्वर की मूर्ति के निर्माता की कला-प्रतिभा को भी अपने से पीछे छोड दियाहै। इस मूर्ति का सौष्ठव और अग-प्रत्यग की रचना दर्शको के सम्मुख एक जीवित सौंदर्य मूर्ति को खडी कर देती है। इतनी विशाल प्रतिमा को इतना सर्वाङ्ग सुन्दर बनाने का काम पापट जैसा कलाविशेषज्ञ और साधक ही कर सकता था।
१९-कु थुनाथ भगवान की मूर्ति ___यह मूर्ति शातिनाथ भगवान के वाएँ पार्श्व मे है और ग्यारह फुट की है। इसका रचना-काल भी वही है। यद्यपि इस मूर्ति की नासिका और ओष्ट खडित है, तथापि उसका सौंदर्य आज भी बड़ा आकर्षक बना हुआ है। वडी