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प्रेमी-प्रभिनदन-ग्रंथ
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आज भी इनकी परम्परा टूटी नही है । एक काले कुलो वैरिस्टर का विदेश मे विरोधी, विद्वेपी और मदान्ध लोगो के बीच न्याय और सत्य के लिए अकेले अविचल भाव से जूझना, स्थापित सत्ता और स्वार्थ के विरुद्ध शान्त सत्याग्रह के शस्त्र का सफलता-पूर्वक प्रयोग करना, अपने हजारो-लाखो देशवासियो मे स्वाभिमान की प्रखर भावना उत्पन्न करना, बच्चो, वूढो नौजवानो और स्त्रियों तक को हिंसक सेना का सैनिक बना कर उन्हें त्याग, बलिदान और कष्ट सहन के लिए तैयार करना, कोई मामूली चमत्कार न था । सारी दुनिया इस शान्त क्रान्ति के समाचारो से थ उठी थी और हिन्दुस्तान में तो इसने एक नई ही चेतना उत्पन्न कर दी थी । सारा देश इस नई क्रान्ति के दृष्टा का उल्लासपूर्वक जय-जयकार कर उठा और कल का बैरिस्टर गाधी श्राज का कर्मवीर गाधी बन गया ओर सन् १९१४ में गाघी जी त्याग और तप के प्रतीक बनकर दक्षिण अफ्रीका में हिन्दुस्तान श्राये । श्राते ही वीरमगाम का प्रश्न हाथ में लिया और विजयी बने । फिर सन् १७ मे उन्होने चम्पारन के निल गोरो के अत्याचारो की बाते सुनी और वे उनका प्रतिकार करने के लिए अकेले वहाँ जा बसे । उनका जाना मफल हुया । निलहो का अत्याचार मिटा | चम्पारन वालो ने सुख की साँस ली। देश को प्रत्याचारी का सामना करने के लिए एक नया और अनूठा हथियार मिला । सन् १८ मे गुजरात मे श्रहमदाबाद के मजदूरो को न्याय दिलाने का मवाल सडा हुआ । गाधी जी ने उनका नेतृत्व सँभाला। उनकी टेक को निवाहने के लिए स्वय उपवास किये। मजदूर डटे रहे । मालिक झुके । गडा निपटा | अहमदावाद मे अहिंसक रीति से मज़दूरो की सेवा का सूत्रपात हुआ और ग्राज अहमदाबाद का मजदूर संघ देश के ही नहीं, दुनिया के मज़दूर सघो में अपने ढंग का एक ही है। और श्रव तो सारे देश मे वह अपनी शाखा प्रशाखाओ के माथ हिन्दुस्तान मजदूर मेवक सघ की छाया तले फैलता चला जा रहा है। अहमदावाद के बाद उसी साल गुजरात के खेडा जिले मे वहाँ के किमानो का लगान सम्वन्वी सवाल उठा । गाधी जी किमानो के नेता बने । उन्होंने लगान वन्दी की सलाह दी। लोग डट गये। सरकार ने दमन शुरू किया। लोग नही झुके । सरकार को झुकना पडा । झगडा मिट गया। गाधी जी का अस्त्र अमोघ सिद्ध हुआ । मारे देश में उसका का बज गया और फिर तुरन्त ही एक साल बाद १९१६ में काले कानून का जमाना श्राया । रौलट एक्ट बना । गावी जी ने उसके विरोध मे देशव्यापी सत्याग्रह सगठित किया। सारे देव ने विरोध मे उपवास रक्खा, प्रार्थना की, हडतालें हुई, सभाओ मे विरोध प्रस्ताव पास हुए। सविनय कानून भग का सूत्रपात हुआ। और इन्ही दिनो अमृतमर का जलियाँवाला बाग शहीदो के खून मे नहा लिया। सारा पजाव सरकारी प्रातक-लीला का नग्नक्षेत्र वन गया । देश इस चोट से तिलमिला उठा । गाधी जी महम उठे। उन्होने अपनी हिमालय-मी भूल कवूल की और अपने सत्याग्रह अस्त्र को लौटा लिया । सन् '२० में दूसरा देशव्यापी श्रहिंसक असहयोग का ग्रान्दोलन शुरू हुआ । 'यग इडिया' और 'नवजीवन' के लेखो ने देश में नया प्राण फूक दिया। खिलाफत के सिलमिले मे देश ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के अनूठे दृश्य देखे । असहयोग का ज्वार आया । नोकरो ने नौकरियाँ छोडी । विद्यार्थियो ने स्कूल और कॉलेजो से सम्बन्ध तोडा । वकीलो ने वकालत छोडी । सरकारी उपाधियो का वहिष्कार हुआ । कोर्ट, कचहरी, कॉलेज, कौन्सिल सव सूने नज़र आने लगे । विदेशी वस्त्रो का बायकाट वढा । होलियाँ जली । गाधी जी ने बारडोली में लगान चन्दी का ऐलान किया कि इतने में चौरीचौरा का वह भीषणकाड घटित हो गया और गाधीजी ने इस सत्याग्रह को भी रोक दिया। वे गिरफ्तार हुए और उनको छ साल की सजा हुई। फिर सन् चौबीस में त्रावणकोर राज्य के अछूतो को न्याय दिलाने के लिए वायकोम सत्याग्रह हुआ । शुरू में सरकार ने सनातनियो का साथ दिया । पर अन्त में वह झुकी और अछूतो को अपने अधिकार मिले । सन् २७ मे मद्रास वालो ने जनरल नील के पुतले को हटाने के लिए सत्याग्रह शुरू किया । गाधी जी उसके समर्थक बने । कुछ दिनो बाद उनकी सलाह से वह ख़तम कर दिया गया और सन् ३७ में काग्रेस मत्रिमण्डल ने नील के पुतले को हटाकर उसकी पूर्ति की । सन् २८ मे विजयी वारडोली का मशहूर सत्याग्रह शुरू हुआ । सरदार वल्लभभाई पटेल ने उसका नेतृत्व किया । गाधी जी उनके समर्थक रहे । सरकार और किसानो के बीच जोरो का सघर्ष शुरू हो गया। सरकार ने दमन करने में कसर