SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 768
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन - गणित की महत्ता श्री नेमिचन्द्र जैन शास्त्री, साहित्यरत्न भगवान् महावीर की वाणी प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग इन चार अनुयोगो में विभाजित है । करणानुयोग में अलौकिक और लौकिक गणित शास्त्र सम्वन्धी तत्त्वो का स्पष्टीकरण किया गया हैं । प्रस्तुत निवन्ध में केवल लौकिक गणित पर ही प्रकाश डाला जायगा । लौकिक जैन गणित की मौलिकता और महत्ता के सम्बन्ध में अनेक विद्वानो ने अपने विचार प्रकट किये हैं । भारतीय गणितशास्त्र पर दृष्टिपात करते हुए डा० हीरालाल कापडिया ने 'गणित तिलक' की भूमिका में लिखा है "In this connection it may be added that the Indians in general and the Jainas in particular have not been behind any nation in paying due attention to this subject This is borne out by Ganita Sārasangraha (V I 15) of Mahāvīrācharya (850.A. D) of the Southern School of Mathematics Therein he points out the usefulness of Mathematics or 'the science of calculation' regarding the study of various subjects like music, logic, drama, medicine, architecture, cookery, prosody, grammar, poetics, economics, erotics etc "" इन पक्तियो से स्पष्ट है कि जैनाचार्यों ने केवल धार्मिकोन्नति में ही जैन गणित का उपयोग नही किया, वल्कि श्रनेक व्यावहारिक ममस्याग्रो को सुलझाने के लिए इस शास्त्र का प्रणयन किया है। भारतीय गणित के विकास एव प्रचार में जैनाचार्यो का प्रवान हाय रहा है । जिम समय गणित का प्रारम्भिक रूप था उस समय जैनो ने अनेक वीजगणित एव मैन्स्यूरेशन सम्बन्धी समस्याओ को हल किया था । डा०जी० थीवो (Dr G Thibaut) साहब ने जैन गणित की प्रशसा करते हुए अपने " Astronome, Astrologie and Mathematk" शीर्षक निबन्ध में सूर्यप्रज्ञप्ति के सम्बन्ध में लिखा है "This work must have been composed before the Greeks came to India, as there is no trace of Greek influence in it" इनमे स्पष्ट है कि जैन गणित का विकास ग्रीको के श्रागमन के पूर्व ही हो गया था । आपने आगे चल कर इसी निवन्ध में बतलाया है कि जैन गणित और जैन ज्योतिष ईस्वी मन् से ५०० वर्ष पूर्व प्रकुरित ही नहीं, अपितु पल्लवित और पुष्पित भी थे । प्रो० वेवर (Weber) ने इडियन एन्टीक्वेरी नामक पत्र में अपने एक निवन्ध में वतलाया है कि जैनो का 'सूर्यप्रज्ञप्ति' नामक ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गणित-प्रन्य है । वेदाङ्ग ज्योतिष के समान केवल धार्मिक कृत्यों के सम्पादन के लिए ही इसकी रचना नही हुई है, बल्कि इसके द्वारा ज्योतिष की अनेक समस्याओ को मुलझा कर जैनाचार्यों ने अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया है । मेथिक मोमाइटी के जरनल में डा० श्यामशास्त्री, प्रो० एम० विन्टरनिट्ज, प्रो० एच० वी० ग्लासेनप और डा० सुकुमाररजनदास ने जैन गणित की अनेक विशेषताएँ स्वीकार की है । डा० वी० दत्त ने कलकत्ता मैथेमेटिकल नोसाइटी से प्रकाशित वीसवे बुलेटीन मे अपने निबन्ध " on Mahāvita's solutions of Rational Triangles and quadrilaterals" में मुख्य रूप से महावीराचार्य के त्रिकोण और चतुर्भुज के गणित का विश्लेषण किया है । आपने इसमें त्रिभुज और चतुर्भुज के गणित की अनेक विशेषताएं बतलाई है । ६०
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy