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कौटल्य-कालीन रसायन (१) चतुर्गुणेन सोसेन शोषयेत् सीसा मिला कर गलाना। (२) शुष्कपटलपियेत्-कडो के साथ पिघलाना। (३) तैलगोमये निषेचयेत्-तेल और गोवर की भावना देना। (४) गण्डिकासु कुट्टयेत्-घन पर कूटना। (५) कन्दली वज्रकन्दकल्के वा निषेचयेत्-कन्दली लता और वचकन्द के कल्क की भावना देना।
(३।१३।८-१२) सीसा मिलाकर शोवन की विधि आजकल भी प्रचलित है। चांदो के साथ तो यह बहुत काम आती है (cupellation or Parkes process) । कौटिल्य ने चांदी के शोधन के सम्बन्ध मे भी इसका उल्लेख किया है-तत्सीस चतुर्भागेन शोषयेत् (२॥१३॥१६) ।
कौटिल्य के ग्रन्य मे तावे और चांदो पर सोना चढाने (goldplating) का भी उल्लेख किया है। इस क्रिया को त्वष्टकर्म कहते है-त्वष्टकर्मण शुल्वभाण्ड सम सुवर्णेन सयूहयेत् (२११३३४९) इस कृत्य को एक विधि इस प्रकार है
चतुर्भागसुवर्ण वा वालुका हिंगुलकस्य रसेन चूर्णेन वा वासयेत् । (२११३३५१)
अर्थात् तावे या चांदी के आभूषण का चतुर्थीश सोना लेकर वालुका के रस और शिंगरफ के चूर्ण के साथ उस पर मोने का पानी चढा दे।
___चांदी साफ करने का काम कई प्रकार की मूषामो (crucibles) में किया जाता था-(१) मिट्टो और हड्डी से बनी (अस्थि तुत्य), (२) सोसा मिली मिट्टी से बनी-सोस तुत्य, (३) शुष्क शर्करा मिली मिट्टी की (शुष्क तुत्थ), (४) शुद्ध मिट्टो की (कपाल तुत्थ), (५) गोवर मिली मिट्टी को (गोमय तुत्य) । (२।१३।५४)
रसरत्नसमुच्चय मे मूषामो का जो विवरण है उससे यह कही अधिक अच्छा है-विशेषतया अस्थि तुत्य और सोस तुत्य की दृष्टि से
मृत्तिका पाण्डुरस्थूला शर्करा शोणपाण्डुरा । चिराध्मानसहा साहि मूषार्यमतिशस्यते ॥ तदभावे हि वाल्मीकी कौलाली व समीर्यते ।। या मृत्तिका दग्धतुष शर्णन शिखियकर्वा हय लद्दिना च । लोहेन दण्डेन च कुट्टिता सा साधारणी स्यात् खलु मूषकार्थम् ॥
(रसरत्नसमु० १०॥५-६) आजकल के युग मे मिट्टो, पोर्सलेन, सिलिका, निकेल और प्लैटिनम को मूषामो का अधिक प्रचार है। यह भी महत्त्व को बात है कि कौटिल्य ने सोना अपहरण करने के ५ ढगो का उल्लेख किया हैतुलाविषममपसारण विनावण पेटको पिंकश्चेति हरणोपाया ॥ २॥१४॥१९॥
अर्थात् (१) डडी मारना (तुला विषम), (२) त्रिपुटक (२ भाग चाँदी में १ भाग तांबा) मिला कर सोना हर लेना (त्रिपुटकापसारण), शुल्कापसारण (केवल ताँवा मिला कर), वेल्लकापसारण (चाँदी-लोहा मिला कर), हेमापसारण (तांवा-सोना का मिश्रण मिला कर), (३) अांख वचा कर सोने के पत्रो के स्थान पर चांदी के पत्र वदल देना विस्रावण कहलाता है। (४) पेटक पत्र चढाते समय को चालाकी से सम्वन्व रखता है। पत्र तीन प्रकार के चढाये जाते है-सयूह्य (गाढे पत्र), अवलेप्य (पतले) और सघात्य (कडियां जोडने वाले) (२॥१४॥३१) । (५) अनेक प्रकार को भरतू चीज़े भर देना पिंक कहाता है (filling materials)।