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දපස්
प्रेमी-प्रभिनदन- ग्रंथ
१०५८ में उस वसादि के निर्वाह के लिए भूमि दान भी किया था। इसने अपने जीवन काल मे अनेक धार्मिक उत्सव किये थे ।
कदम्वराज कीर्त्तिदेव की प्रथम पाणिगृहीता पत्नी मालल देवी का भी धर्मप्रचारिका जैन महिलायों में ऊँचा स्थान है । इसने सन् १०७७ मे कुप्पटूर में पधनदी सिद्धान्तदेव के द्वारा पार्श्वदेव चैत्यालय का निर्माण कराया था । इस देवी ने जिनालय के तैयार होने पर एक वडा उत्नव किया था तथा इस उत्सव में सभी ब्राह्मणो को आमन्त्रित किया था और उनकी पूजा कर उन्हें घन मानादि द्वारा सन्तुष्ट किया था । इसलिए इसा जिनालय का नाम उन्ही आमन्त्रित ब्राह्मणो से ब्रह्मजिनालय रखवाया था । यह जिनालय एडेनाडु नामक सुन्दर स्थान पर था । इसके सम्वन्ध मे उल्लेख है—''This sage belonged to the Mula Sangha and the Tintrinka gaccha This Tinaloya she obtained from the king Sıddoni the most beautiful place in Edenad."
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इसके अनन्तर इसी शताब्दी की जैन महिलाओ मे सान्तर परिवार की जैनवर्माराविका चट्टल देवी का नाम विशेष उल्लेखयोग्य है । यह देवी रक्कम गग की पौत्री थी। इसका विवाह पल्लवराज काडुवेही से हुआ था । असमय में ही इसके पति और पुत्र का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद इसने अपनी छोटी बहन के तैल, गोग्गिए,
डुग और वर्म इन चार पुत्रो को अपना मातृस्नेह समर्पित किया । इन्ही की सहायता मे सान्नरो की राजवानो पोम्बुच्चपुर में जिनालयो का निर्माण किया । इन जिनालयो मे एक पत्रकूट या पचवमादि है जो 'ऊवितिलकम्' के नाम से प्रसिद्ध है । इस परोपकारी देवी ने तालाव, कुएँ, मन्दिर तथा घाटो का भी निर्माण कराया। यह श्राहार, ज्ञान,
षधि और अभय इन चारो प्रकार के दानो से जनता की सेवा करती थी। इसके सम्वन्ध में कहा गया है कि यह लावण्यवती, स्नेह की मधु धारा और परोपकार की साक्षात् मूर्ति थी । इसने जैनधर्म के प्रचार और प्रसार में पूर्ण महयोग प्रदान किया था ।
श्रवण वेलगोल के शिलालेख न० २२६ (१३७) से पता लगता है कि इसी शताब्दी मे पोयमल सेट्टि और नेमि सेट्टि की माताओ - मात्रिकब्बे और शान्तिकब्बे ने जिनमन्दिर और नन्दीश्वर निर्माण करा कर भानुकीर्ति मुनि से दोक्षा ली थी । ये दोनो देविना जैनधर्म को प्रचारिका थी । इन्होने अपने समय मे जैनधर्म का अच्छा प्रसार किया था । साधारण धर्मसेवी महिलाओ मे श्रीमती गन्ती का नाम भी मिलता है । इस देवी के गुरु दिवाकर नन्दी मुनीन्द्र बताये गये है | श्रवण वेलगोल के शिलालेख न० १३६ (३५१) से पता चलता है कि माकवे गन्ती न श्रीमती गन्ती के स्मरणार्थ उक्त लख लिखवाया था । लेख के प्रारम्भ में बताया गया है कि देशीय गण कुन्दकुन्दान्वय के दिवाकर नन्दी और उनकी शिष्या श्रीमती गन्ती का स्मारक है । इस प्रकार अनेक साधारण महिलाएं जैनधर्म की मेवा करती रही ।
ग्यारहवी शताब्दी मे राजपरिवार को देवियो गग महादेवी को जैनधर्म प्रचारिकाओं में अत्यन्त ऊँचा स्थान प्राप्त है। यह भुजबल गग हेम्माडि मान्धाता भूप को पत्नी थो । इस देवी का दूसरा नाम पट्टदमहादेवी भी मिलता है । यह देवी जिन चरणारविन्दो मे लुब्धभ्रमरी थी ।
ग्यारहवी शताब्दी मे शान्तलदेवी की माता माचिकव्वे भी वडी धर्मात्मा एव धर्मसेवी हुई है । इसका सक्षिप्त वशपरिचय मिलता है कि दण्डाघीग नागवर्म और उनकी भार्या चन्दिक के पुत्र प्रतापी वलदेव दण्डनायक और उनकी भार्या वाचिकवे मे माचिकब्वे की उत्पत्ति हुई थी। यह वचपन से ही वडी धर्मात्मा और स्पवती थी । इसका विवाह मारसिङ्गय्य युवक से हुआ था । इसका पति शैव धर्मानुयायी था, लेकिन यह पक्की जैन थी। इसके गुरु का नाम प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव, वर्द्धमानदेव और रविचन्द्रदेव था । श्रवण वेलगोल के शिलालेख न० ५३ (१४३) से प्रकट होता है कि इसने वेलगोल में आकर एक मास के अनशन व्रत के पश्चात् गुरुग्रो की साक्षि-पूर्वक सन्यास ग्रहण किया था । इस धर्मात्मा देवी की पुत्री महारानी शान्तलदेवी हुई। यह प्रारम्भ से ही माता के समान