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अहार और उसकी मूर्तियाँ
६२५ की इस प्रतिमा से भी विशाल प्रतिमाएँ देखी है, लेकिन इस जैसी भव्य, सौम्य श्रीर सुन्दर मूर्ति उन्होने अब तक . नही देखी । "इस महान शिल्पी ने सुप्रसिद्ध गोम्मटेश्वर की मूर्ति के निर्माता की कला प्रतिभा को भी अपने से पीछे छोड दिया है । इस मूर्ति का सौष्ठव श्रोर श्रग प्रत्यग की रचना हमारे सम्मुख एक जीवित सौन्दर्य - मूर्ति को खड़ी कर देती है ।""
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इस प्रतिमा का शिलालेख सुरक्षित है । यह लेख लगभग दो फुट चार इच की लम्बाई और नौ इच की चौडाई में हैं। नौ पक्तियाँ हैं । इस शिलालेख से मूर्ति का निर्माण कराने वाले श्रेष्ठि का पता तो चलता ही है, साथ ही शिल्पकार का भी । अन्य कई वातो की भी जानकारी होती है। पूरा लेख इस प्रकार है
पक्ति १
ॐ नमो वीतरागाय ॥ ग्रहपतिवंशसरोरुहसहस्ररश्मि सहस्रकूट य । वाणपुरे व्यधितासीत् श्रीमानि पक्ति २
ह देवपाल इति ॥१॥ श्रीरत्नपाल इति तत्तनयो वरेण्य. पुण्यकमूर्तिरभवद्वसुहाटिकाया । कीर्तिर्जगत्रय पक्ति ३
परिभ्रमणश्रमार्त्ता यस्य स्थिराजनि जिनायतनच्छलेन ॥ २ ॥ एकस्तावदनूनबुद्धिनिधिना श्रीशान्तिचैत्याल पक्ति ४
यो दिष्टयानन्दपुरे पर परनरानन्दप्रद श्रीमता । येन श्रीमदनेशसागरपुरे तज्जन्मनो निर्मिमे । सोयं श्रेष्ठिवरिष्ठगल्हण इति श्रीरहणाख्याद्
पक्ति ५
भूत ॥ ३ ॥ तस्मादजायत कुलाम्वरपूर्णचन्द्र श्रीजाहडस्तदनुजोदयचन्द्रनामा । एक परोपकृतिहेतुकृतावतारो धम्र्मात्मक' पुनरमो
पक्ति ६
घसुदानसार ॥ ४ ॥ ताभ्यामशेषदुरितौघशमैकहेतु निर्मापित भुवनभूषणभूतमेतद् । श्रीशान्तिचैत्यमति नित्यसुखप्रदा
पक्ति ७
तृ मुक्तिश्रियो वदनवीक्षणलोलुपाभ्याम् ||५|| सवत् १२३७ मार्ग सुदि ३ शुक्रे श्रीमत्परमर्द्धिदेवविजयराज्ये । पक्ति ८
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चन्द्रभास्करसमुद्रतारका यावदत्र जनचित्तहारका | धम्मंकारिकृतशुद्धकीर्त्तन तावदेव जयतात् सुकीर्त्तनम् ॥६॥ पक्ति ९
वाल्हणस्य सुत. श्रीमान् रूपकारो महामतिः । पापटो वास्तुशास्त्रज्ञस्तेन विम्व सुनिर्मितम् ॥ ७ ॥
अनुवाद
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वीतरागके लिये नमस्कार ( है ) ।
श्लोक १–जिन्होने बानपुरमें एक सहस्रकूट चैत्यालय बनवाया, वे ग्रहपति वश रूपी कमलो ( को प्रफुल्लित करने) के लिये सूर्यके समान श्रीमान् देवपाल यहाँ ( इस नगर में ) हुए ।
''प्रहार' पुस्तक में प्रेमीजी का लेख, पृष्ठ २४
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