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प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ धमकी भी दी गई। पर बात सच थी। बेचारे क्या करते ? अन्त में उचित मावजा देकर लोगों को शान्त कर दिया। कुछ सिपाही बरखास्त कर दिये गये और प्रवन्धकर्ता तहसीलदार की बदली हो गई । देवरी के इतिहास में इस तरह के राजकर्मचारियों की ज्यादती का प्रतिरोध समाचार-पत्र द्वारा करने का यह पहला ही अवसर था।
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प्रेमीजी विधवा-विवाह के समर्थक है। उन्होने जैन-समाज में इसके प्रचार के लिए समय-समय पर यथेष्ट आन्दोलन किया है । उनके लघु भ्राता सेठ नन्हेलाल जी की पत्नी का स्वर्गवास हो जाने पर उन्होने ६ दिसम्बर १९२८ को उनका विवाह हनोतिया ग्राम-निवासी एक वाईस वर्षीय परवार-विधवा के साथ करके अपने विधवा-विवाह-विषयक विचारो को अमली रूप दिया। उस समय विरोधियो ने विरोध करने में कुछ कसर नही रक्सी । जैन-जाति के मुखियो को विवाह में भाग लेने से रोका गया, सत्याग्रह करने तक की धमकी दी गई, पर प्रेमीजी के अदम्य उत्साह और कर्तव्यशीलता के कारण विरोधियो की कुछ दाल न गली। विवाह सागर मे चकराघाट पर एक सुसज्जित मडप के नीचे किया गया था। चार-पांच हजार आदमी एकत्र हुए थे। सागर के प्राय सभी वकील, जैन जाति के बहु-सख्यक मुखिया और सागर के बहुत से प्रतिष्ठित व्यक्ति इस विवाह में सम्मिलित हुए थे। जैन-अर्जन वीसो वक्ताप्रो के विधवा-विवाह के समर्थन में भाषण हुए।
विवाह के पश्चात् देवरी में प्रेमीजी ने १२ दिसम्बर को एक प्रीति-भोज दिया। उमी दिन स्थानीय म्यूनिसिपैलिटी के अध्यक्ष प० गोपालराव दामले बी० ए०, एल-एल० वी० की अध्यक्षता मे उक्त विधवा-विवाह का अभिनन्दन करने के लिए एक सार्वजनिक सभा की गई। सभा मे सैय्यद अमीरअली 'मीर', दशरथलाल श्रीवास्तव, शिवसहाय चतुर्वेदी, बुद्धिलाल श्रावक, ब्रजभूषणलाल जी चतुर्वेदी और नाथूराम जी प्रेमी के भाषण हुए । सभापति महोदय ने ऐतिहासिक प्रमाणो के द्वारा विधवा-विवाह का समर्थन किया और सभा विसर्जित हुई।
कहने का तात्पर्य यह कि स्वर्गीय सैय्यद अमीरअली 'मीर' और श्री नाथूराम जी प्रेमी के सत्सग से देवरीनिवासियो में विद्याभिरुचि तथा अन्याय के प्रति विरोध करने का साहस उत्पन्न हुआ। प्रेमीजी के 'प्रजा को तबाही वाले लेख के पश्चात् स्थानीय अधिकारियो की स्वेच्छाचारिता और अन्याय के विरुद्ध बहुत मे लेख लिखे गये, जिसके फलस्वरूप अन्याय की कमी हुई और अनेक युवको में कविता करने तथा साहित्यिक लेख लिखने की रुचि उत्पन्न हुई। देवरी
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