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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ
चत चितं चह और चितं मैं हारी वैसाख न लागी आँख विना गिरधारी। जेठ जले अति पवन अग्नि अधिकारी , असढा में बोली मोर सोर भनौ भारी। साउन में बरस मेउ जिमी हरयानी, भदवा की रात डर लग झिकी अंघयारी। क्वार में करे करार अधिक गिरधारी , कातिक में आये ना स्याम सोच भये भारी। अगना में भनौ अंदेश मोय दुख भारी, पूषा म परत तुषार भीज गई सारी। माव मिले नंदलाल देख छबि हारी,
फागुन में पूरन काम भये सुख भारी। दूसरे घर से भी दो कठो से मिल कर दूसरी बारामासी सुनाई पड़ रही है
चैत मास जब लागे सजनी विछ्रे कुंअर कन्हाई,
कौन उपाय फरों या ब्रज में घर अगना ना सुहाई, थोडा आगे बढने पर एक ओर से बिलवाई गीत भी सुन पडा--
रथ ठांडे करी रघुवीर,
तुमारे सगै रे चलो वनवासा की। तुमारे कार्य के रथला वन,
___काये के डरे है बुनाव , चन्दन के रथला बने है,
और रेसम के डरे है बुनाव । तुमारे को जौ रथ पै वैठियो,
को जो है हांकनहार , रानी सीता जी रथ पै बैठियो,
राजा राम जी हांकनहार । गाँव के छोर पर एक ओर से यह विलवाई भी सुन पडी
अनबोलें रहो ना जाय,
ननद वाई वीरन तुमारे अनवोला गइया दुभावन तुम जइयो,
उतं बछडा को दइयो छोर ॥ अनबोलें।
भुजाई मोरी! बीरन हमारे तब बोलें। ग्रीष्म ऋतु की प्रखरता में जव नागरिक समुदाय बिजली के पखो और बर्फ के पानी में भी ऊबता हुना-सा जान पडता है, उन दिनो भी गाँवो मे कितने ही गीतो द्वारा समय व्यतीत हुआ करता है। अकती, दिनरी, बिलवाई प्रादि कितने ही प्रकार के गीत भिन्न-भिन्न अवसरो पर गाये जाते है। नगर के निवासी भले ही सावन के आने का भली प्रकार स्वागत न कर सकें, किन्तु गाँवो में उसकी उपेक्षा न होगी, घर-घर दिनरी और राघरे हो रहे है