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विन्ध्यखण्ड के वन
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६००
४० २६
F०० १६०
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जाती है। वनो का प्रभाव आसपास के तापमान पर अच्छा होता है। परीक्षणो से यह पाया है कि वही या वैसा ही वनहीन स्थान अधिक सर्द और गर्म हो जाता है । वन-भूमि पर शीत का प्रभाव लगभग ४ से ६ डिग्री कम होता है
और ग्रीष्म मे ६ से ८ डिग्री तक कम होता है । अर्थात् वनहीन भूभाग यदि शीत मे ६०° तक होता तो वन भूमि होने पर ६४ या ६६ होता और ग्रीष्म में ६० होता तो वनभूमि होने पर ८२ या ८४ ही रहता। शीत और ऊष्णता की प्रखरता को कम करने की शक्ति वनो में है । वात यह है कि एक तो वनो के कारण वायु में नमी रहती है। दूसरे शीत या ग्रीष्म की प्रखरता वनो के शीर्ष-भाग पर टकरा कर मन्द पड़ जाती है। उत्तर भारत तथा मध्य भारत के कुछ नगरोको वनहीन प्रदेश के नगर और वनवेष्टित देश के नगरो में वांट कर अध्ययन किया जावेतो परिणाम यो मिलेगा
१-वनहीन प्रदेश के नगर नगर का
समुद्र सतह से जनवरी का औसत जून का औसत वर्षा इचों में नाम ऊचाई तापमान तापमान
(वार्षिक) बनारस
२६२ आगरा
५५५ मेरठ
७३८ दिल्ली
७१८ बीकानेर
७०१
२-वनभूमि के नगर माडला २५०
७८ रायपुर ६७०
५० जवलपुर
१३२७ बनारस और माडला एक सी स्थिति मे है, परन्तु तापमान और वर्षा के अन्तर का कारण वन है। यदि आगरा के पास थोडी बहुत वृक्षावलियाँ न हो तो वह बीकानेर की सी स्थिति में आ सकता है।
भारतवर्ष के वन वृक्षो से और वनस्पतियो से जितने सम्पन्न है उतने समस्त ससार के और देशो के वन नही है। हमारे देश के वनो मे २५०० से अधिक जातियो के तो केवल वृक्ष ही है । लताएँ और क्षुप आदि अलग रहे, जब कि इग्लैंड में केवल चालीस प्रकार के वृक्ष है और अमेरिका जैसे महाद्वीप में करीब तीन सौ। ज्यो-ज्यो खोज होती जा रही है, हमारी यह सम्पदा और प्रकाश में आती जा रही है, परन्तु इतने वृक्षो में काम में लाए जाने वाले वृक्ष उँगलियो पर गिनने योग्य है । विन्ध्यखड के वन भी ऐसे ही सम्पन्न है । यहाँ सदा हरे वृक्षो से लगा कर अर्ध मरुस्थल के वृक्ष जैसे नीम, बबूल आदि पाए जाते है, परन्तु सागौन, साजा, महुआ, आम, जामुन, अशोक, बवूल, तेद, अचार, हल्दिया, तिन्स आदि मुख्य है। लताएँ और क्षुप अनगिनती है। वन-उपज से कितनी वस्तुएँ काम में लाई जाती और बनाई जाती है, इसका अनुमान करना भी सहज नही है। हमें पग-पग पर वन-उपज से बनी वस्तुओ की आवश्यकता और महत्त्व का अनुभव होता है।
विन्ध्यदेश के वनवृक्षो में सबसे अधिक काम आने वाला और अनेक दृष्टियो से सर्वोत्तम वृक्ष सागौन है। सागौन मे अधिक मजबूत और सुन्दर वृक्ष और भी है, परन्तु यह उन वृक्षो मे सर्वोत्तम है, जो कि प्रचुर मात्रा मे मिलते है। विन्ध्यदेश में इसके प्राकृतिक वन भरे पडे है। सबसे अच्छा सागौन ब्रह्मदेश और मलावार का माना जाता है, परन्तु विन्ध्यप्रान्त के सागौन मे कुछ कमी होने पर भी रग और रेशे की दृष्टि से ब्रह्मदेश के सागौन से अधिक सुहावना होता है। अन्य वृक्ष धामन, सेजा, शीशम, जामुन, महुआ, तिन्स, तेदू, हल्दीया आदि भी महत्त्वपूर्ण है।
____लकडी की उपादेयता निश्चित करने मे लकडी की रचना, आकार, लम्बाई-चौड़ाई, वजन, शक्ति, सख्ती, लचक, सफाई, टिकाऊपन, रग, दाने, रेशे और मशीन या अौजार से काम करने में प्रासानी आदि वातो पर विचार
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