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बुन्देलखण्ड के दर्शनीय स्थल
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स्तम्भ के पास प्रस्तर-निर्मित एक भव्य मन्दिर है। इमे मढी कहते है। इसके दरवाज़ो और खम्भो का प्रत्येक पत्यर सुन्दर कारीगरी, वेलबूटो और देवी-देवताओं की मूर्तियो से सुसज्जित है। यह मढी ही यहां की सर्वश्रेष्ठ, दर्शनीय इमारत है। विजय स्तम्भ से एक फलांग दूर महावीरजी का मदिर है। मूर्ति ७ फुट ऊँची और अपने ढग की निराली ही है। महिषासुरमर्दिनी का मन्दिर यहाँ से एक फलांग दक्षिण मे है । मन्दिर बहुत वडा और सुन्दर है। मूर्ति मफेद संगमर्मर की बनी है और तीन फुट ऊंची है।
यह गांव १५वीं सदी में गढा मडला के गोड राजानो ने वसाया था। पश्चात् ओरछा नरेश वीरसिंह जू देव प्रथम ने इसे गोडो से छीन लिया और मम्भवत इस नगर की विजय-स्मृति में ही सत्रहवी मदी के प्रारम्भ में उन्होने उक्त विजय-स्तम्भ का निर्माण कराया।
खिमलासा-सागर से ४१ मील दूर खुरई तहसील में ऐतिहासिक स्थानो में से एक है। किसी राजपूत और मुसलमान के सम्मिलित प्रयास का बनवाया हुआ पुराना किला भी यहां पर है। इसके भीतर शीशमहल दर्शनीय है । इसमें दर्पण जडे थे। कुछ अव भी मौजूद है । शीगमहल के अतिरिक्त पजपीर की दरगाह भी है, जिसमें लगी हुई पत्यर की जाली विशेष कलापूर्ण है। प्राचीनकाल में अनूपसिंह ने जव इस पर हमला किया तव इसके चारो ओर पत्थर की एक दीवार वना दी गई थी, जो अब कुछ-कुछ गिर गई है। यहां पर शिलालेख भी कई हैं। किले के सिवाय खिमलासे मे सतीचीरो की भी बहुतायत है। उनमें से ५१ में तिथि-सवतो के साथ-साथ भिन्न-भिन्न मतियो और वादशाहो के नाम भी अकित है। औरगजेव के समय की वनवाई एक ईदगाह है। ममजिद है। पूरा-का-पूरा खिमलासा पत्थरो का बना हुआ है।
यहाँ पर प्राचीन काल में संस्कृत के शिक्षण का वडा प्रचार था। अठारहवी सदी में स्वय पचाग बना कर निर्वाह करने वाली विदुषी अचलोवाई यही रहती थी। खिमलासे के स्मृति-चिह्न ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और देखने योग्य है।
राहतगढ–यहाँ पर एक विस्तृत किला है, जो ऊंचे स्थान पर बना हुआ है । इसमे वडी-बडी २६ वुर्जे है। वहुनेरी तो रहने के काम में लाई जाती थी। किले के हृदयाचल में ६६ एकड भूमि है। इसमें पहले महल, मन्दिर
और बाजार बने हुए थे। 'वादल महल' सवसे ऊँचा है। इसे गढा मडला के राजगोडो का वनवाया वतलाते है। अन्य स्थल जोगनवुर्ज है। इस पर से प्राणदण्ड वाले कैदियो को वीना नदी की चट्टानो पर ढकेल दिया जाता था। लगभग तीन मील की दूरी पर नदी का ५० फुट ऊंचा प्रपात भी है।
गढपहरा-मैदान से एकदम ऊँचे उठने वाले गिम्बर पर दागी राजाओ का वनवाया एक किला है। शीशमहल भी है, जिनमें रग-विरगे कांच जडे हुए थे। किला जीर्णावस्था में है। किले के उत्तर मे टौरिया के नीचे मोतीताल नामक छोटा-सा तालाव है। गढ से सटा हुआ हनुमान जी का मन्दिर है। आपाढ माम के प्रत्येक मगलवार को छोटा-सा मेला भरता है।
___ गढ़ाकोटा की धौरहर-छत्रसाल के लडके हृदयशाह ने गांव से दो-ढाई मील दूर रमना मे १३ फुट लम्वी और उतनी ही चौडी तया १०० फुट ऊंची धौरहर बनवाई थी। कहते है कि इस पर से उमकी रानी सागर के दीप देखा करती थी।
कुडलपुर-हटा तहसील मे हिंडोरिया-पटेरा सडक पर दमोह से २३ मील की दूरी पर जैनियो का तीर्थस्थान है । एक पहाडी पर २०-२५ जन-मन्दिर बने है। कुछ पहाडी के नीचे है। इनमे वर्द्धमान महावीर का मन्दिर मवमे पुराना है। मूर्ति की ऊंचाई वारह फुट है । मन्दिर के द्वार पर एक शिलालेख है, जिससे पता चलता है कि ढाई सौ वर्ष पूर्व (सन् १७००) कुडलपुर का नाम मन्दिर-टीला था। यहाँ जैनियो का मेला भरता है।
पहाडी के नीचे एक तालाव के किनारे दो मन्दिर हिन्दुओ के है। ये जैन मन्दिरो की अपेक्षा बहुत पहले बनाये गये थे।