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________________ ५५२ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ चारो ओर निर्मर्याद फैलते हुए अपने निर्मल यश से जिसने तीनो लोको को भर दिया है ऐसा सघपति ननराज नाम का कामदेव का पुत्र ससार मे जय पाता है, और कामदेव की भवकू नामक गुणवती और महादेव के मस्तक पर रही हुई गगा नदी के उछलते हुए बडे-बडे तरगो से घुले हुए चन्द की उज्ज्वलता के जैसा जिसका चरित्र है, ऐसी पुत्री जय पाती है ॥२१॥ सघपति नूना के धर्मपरायणा जयश्री नामक पत्नी थी। उनके बहुत लक्ष्मी वाला प्रसिद्ध महादेव नामक पुत्र और (१) कन्हाई और (२) सोनाई नामक दो पुत्रियां थी। महादेव के बुद्धिमानो मे श्रेष्ठ प्रश्वधीर नामक साधुचरित पुत्र था ॥२२, २३॥ इस प्रकार अपने कुटुम्ब के साथ देवगिरि (दौलतावाद) रहते हुए सघपति नूना ने अनेक प्रकार के पुण्य की परम्परा रूप श्री अन्तरीक्ष आदि तीर्थों की अद्भुत यात्राएँ की ॥२४॥ और श्री शत्रुञ्जय, गिरनार, आबू तीर्थ आदि की यात्रा के इच्छुक बुद्धिमान सघपति नूना ने कदम-कदम पर दानरूपी जल से जैन-शासन रूपी वन को सीचते हुए दक्षिण देश के सघ के साथ बडी सजधज से गुजरात की ओर प्रयाण किया ॥२५॥ जिसकी यात्रा में उत्तम और अतीव आँखो के चलन से एव रथो के समूह से उछली हुई धूल के समूह से आकाशमार्ग व्याप्त होने के कारण सूर्य अदृश्य हो जाने से दिवस रात्रि जैसा हो गया और दीपको का प्रकाश चारो ओर फैल जाने से रात्रि दिवस जैसी हो गई ॥२६॥ अश्वो की दौड से कम्पायमान पृथ्वी के भार से जिनके सिर टूट गये है, ऐसे दिग्गजो ने पृथ्वी का समग्र भार शेषनाग को दे दिया, शेषनाग ने कच्छपराज को दे दिया वह भी उस भार से शरीरभग्न हो जाने से सकुचित अग वाला हो गया। इस प्रकार सबके तीर्थयात्रा को जाते समय इन सब ने अपना अधिकार छोड दिया ॥२७॥ जिसके यात्रा के समय उडे हुए धूल कणो से व उछलते हुए श्री तीर्थकर प्रभु के स्नान के जल के प्रवाह से स्वर्गलोक के कमल और मत्यलोक के कमलो का मिलान हो गया ॥२८॥ उस समय दैदीप्यमान गूर्जर-मडल के स्वामी सुलतान से यात्रा के फरमान और पोपाक के दान के द्वारा सम्मानित किये गये और उसकी जाति के भव्यजनो से भी सम्मानित किये गये उस सधपति ने अगुवा वन कर जीरावला आदि मुख्य तीर्थों की यात्राएँ की ॥२६॥ दुषम नामक इस दुष्ट समय में भी द्रव्य का वडा भारी त्याग करके इस प्रकार भावनापूर्वक तीर्थयात्रामो को करने वाले इस (सघपति) ने अपने अद्भुत चरित्र से आम्र राजा, महाराजा कुमारपाल, वस्तुपाल आदि सव को याद दिलाया है ॥३०॥ मांगने वालो के समूह में पुष्कल धन का व्यय करके भी जनशासन की प्रभावना करता हुआ यह (सधपति) सव यात्राएँ करके श्रीपत्तन नामक नगर में पाया ॥३१॥ वहां पर सघपति ने चन्द्रगण रूप कमल के लिए सूर्य समान गणाधीश श्री सोमसुन्दर नाम के वडे गुरु का बन्दन किया और बडे-बडे उत्सवो के समूह से जिनमत की बड़ी भारी प्रभावना की ॥३२॥ श्री स्तम्भतीर्थ, (खम्भात) पाटन, अन्य तीर्थ और कर्णावती (वर्तमान अहमदावाद) आदि अनेक नगरो में इसने समस्त सघ को और समस्त मुनिमडल को उत्तम वस्त्र पहनाये ॥३३॥ और सघपति राजमल्ल की पत्नी देमाई ने भी वहाँ तीर्थयात्रा के प्रमुख पुण्यकार्य करते हुए मनोहर उद्यापन प्रादि किये ॥३४॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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