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________________ ૧૪૦ प्रेमी-अभिनवन-ग्रथ की भूमि आज जीवित अवस्था में है । उनके हास्य के कुछ उदाहरण देखिये --' विवाह का शारदा - कानून जैसा विनोदी कानून और कोई नही होगा । गुनाह हो जाने के बाद यह कानून किमी रियासती पुलिस की भांति वहाँ अँगsing हाइयाँ भरते हुए भाता है । बहुत बार प्राता भी नही । चार महीने चतुर्भुज होने के ( जेल जाने के ) वाद अगर चाहे तो प्रादमी एक अनजान लडकी से जनम भर के लिए चतुर्भुज (विवाहित) हो सकता है, तो इतना हम कोई भी श्रार्यपुरुष करने के लिए उद्यत होगा ।' 'कविजनो का क्या कहिये। उनकी कल्पनाशक्ति इतनी उर्वरा है कि उनमें से कोई तो हिमालय के शिसर पर बैठ कर भी 'एक प्लेट आइसक्रीम खाने की इच्छा व्यक्त कर सकता है ।' गडकरी की 'श्ररुण' नामक वीररस की उत्प्रेक्षात्रो मे परिपूर्ण काव्य पर अत्रे ने एक हास्यरम की उत्प्रेक्षाश्री मे भरी पैरोडी लिसी है, वैसे ही माघव ज्यूलियन के 'तू' और 'मैं' की भी । य० गो० जोशी के लिखे हुए 'इटर व्यू' (मुलाकातें) हास्य से भरे-पूरे है । वाल्टेयर का युग श्रव मराठी दूर नही । 'पुनर्भेट' नामक उनके कहानी - सग्रहो म 'जय मग्नेशिया' म एक देशभक्त शुद्ध स्वदेशी श्रोपधि के पुरस्कार मेग्नेशिया का भी कैसे वहिष्कार करता है, इसका वर्णन है, 'इतिहास के प्रश्नपत्र में श्राधुनिक शिक्षाप्रणाली पर बहुत गहरा व्यग है, 'ग्यानबा तुकाराम श्रीर टेकनीक' म आधुनिक लेनको की टेकनीक - प्रियता का परिहाम है। ऐसे ही श्रीर भी कई उदाहरण मिल सकेंगे । स्वतत्र हास्यनिवच लिसने की परपरा क० लिमये, चि० वि० जोगी, शामराव थोक, वि० मा० दी० पटवर्धन यादि लेखको ने चलाई । ना० धो० ताम्हनकर का 'दाजी' अविस्मरणीय है । बाल- माहित्य र बोलपटो मे भी हाम्यरम के दर्शन श्रव हमें पर्याप्त श्रीर प्रचुर मात्रा में मिलने लगे है । मन्दसौर ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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