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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ
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जीवनराज गौतमचन्द दोशी का साहित्य उल्लेखनीय है। भगवद्गीता के समान महत्वपूर्ण श्री उमास्वामी कृत 'तत्त्वार्थसूत्र' अथवा 'मोक्षशास्त्र' नामक दशाध्यायी सस्कृत ग्रथ का मराठी में प्रसन्न शैली में उत्तम अनुवाद
आपने किया है। महावीर ब्रह्मचर्याश्रम कारजा को ककुवाई ग्रथमाला से इसी की अगली तीन प्रावृत्तियां प्रकाशित हुई है। इस ग्रथ का अंग्रेजी अनुवाद वै० जुगमदरलाल और ब्रह्मचारो गीतलप्रसाद जी ने किया है (सन् १९२०)। इसी ग्रथ का अनुवाद और टोका जर्मन भाषा मे हरमन जैकोबी साहब ने की है। इस ग्रथ पर देवनदो उर्फ पूज्यपादाचार्य का सर्वार्थसिद्धि नामक टीकात्मक ग्रथ प० क० निटवे ने प्रकाशित किया है, जिसे ववई विश्वविद्यालय ने एम० ए० और वी० ए० के पाठ्यक्रम मे सन्निहित किया है। इसी जैन सिद्धान्तात्मक मूत्रमय ग्रथ पर विभिन्न चालीस प्राचार्यों ने टोकाएँ लिखी है। आचार्यवर्य गुणभद्र ने 'आत्मानुशासन' नामक मार्मिक अनुवाद प्रस्तुत किया है। इसमें काव्य और दर्शन का मधुर समन्वय हमे मिलता है । जिनसेन और गुणभद्र आदि कवीन्द्रो की योग्यता कालिदास के समान है । 'हरिवशपुराण' नामक ग्रथ का अनुवाद मराठी में कर जीवगजभाई ने पर्याप्त यश सपादन किया है। सस्कृत तया मराठी दोनो भाषामो पर अनुवादकर्ता का प्रभुत्व होने के कारण यह अनुवाद पढते समय मूलग्रथ का हो रसास्वाद पाठको को होता है। 'सार्वधर्म', 'जैन सिद्वात प्रवेशिका' भी प० गोपालदास के ग्रयो के अनुवाद है। इनमें से प्रथम मे जैन धर्म का विश्वकल्याणोपकारित्व तथा दूसरे मे जैनागम के पारिभाषिक शब्दो को ययार्थ व्याख्या दी गई है। इनके अनुवाद किये हुए 'सार्वधर्म' तथा वाज-पार्टील के 'भट्टारक' नामक निवध दक्षिणमहाराष्ट्र जैन सभा ने प्रकाशित किये है। ब्रह्मचारो जो को यह माहित्यसेवा उनको साहित्यभक्ति के अनुरूप है। जिनवाणी प्रकाशन के लिए आपका किया हुआ त्याग अत्यत सराहनीय है। परतु आपके ब्रह्मचारी होने के पश्चात् आपकी साहित्यसेवा स्थगित हो गई, यह देखकर हम सभी माहित्यरमिको को खेद होता है।।
धर्मवीर रावजी सखाराम दोशी ने जैनवाचनपाठमाला (भाग १-४) और कोर्तनोपयोगी भाग्यानादिको का अनुवाद मराठी में किया है । आपने सौ से अधिक सस्कृत ग्रयो को मराठो पहनावा दे कर प्रकाशित किया, यह बात आपके जैन साहित्य के प्रति अनुपम प्रेम को व्यक्त करती है। हीराचद नेमचद को विदुपी कन्या ककुबाई ने दशलाक्षणिक धर्म, समयसारिकलश, तत्त्वसार, मृत्युमहोत्सव, सल्लेसना आदि ग्रथो का मरस तथा सुबोध मराठी अनुवाद कर आपने अपनी वैराग्यशोल वृत्ति का परिचय दिया है। इन ममो ग्रथो में नीति, धर्म, त्याग तथा निवृत्तिमार्ग को प्रधानता देकर विवेचन किया गया है।
___ कविवर्य प० जिनदास के अनुवादित ग्रथ है--स्वयभूस्तोत्र, श्रीपात्र केसरोस्तोत्र, श्री गातिनाथपुगण, श्री वरागचरित्र, सुकुमारचरित, सावयवम्मदोहा, सारसमुच्चय, प्रभाचदाचार्य कृत दशभक्ति आदि। ।
श्रो नानचद वालचद गाधी, उस्मानाबाद नामक विद्वान कवि ने द्रव्यसग्रह, थावकप्रतिक्रमण, रविवारप्रतकथा इत्यादि काव्य रचनाएँ की है। उनके वधु तथा प्रसिद्ध साहित्यिक श्री नेमचद वालचद वकील ने गोमटसार जैसे कर्मसिद्धात का सूक्ष्म विवेचन करने वाले गहन ग्रथ का सुबोध अनुवाद कर जैन-अजन पाठको को उपकृत किया है। आप ब० शोतलप्रसाद जी के शिष्य है। सात वर्षों की गुरुसेवा के पश्चात् आपने इन ग्रथो की रचना की। इन ग्रथो के अलावा "ईश्वर कुछ करता है क्या ?", गुणस्थान चर्चा, सुभाषितावलो, सामयिक पाठ, सज्जनचित्तवलय, पद्मनदिपचविशत इत्यादि ग्रथो से आपके विस्तृत व्यापक अध्ययन का परिचय प्राप्त होता है। जैनेतिहाससार के भो वे ही सचालक है। उसमे आपके कई मार्मिक एव विद्वत्तापूर्ण लेख प्रकाशित हुए है। उस्मानाबाद के उत्साही तरुण जैन साहित्योद्धारक कवि श्रोमान् मोतीचद होराचद गाँधो उर्फ 'अज्ञात' की 'साधुशिक्षा' प्रथम कलात्मक काव्य रचना है। अनतर वृहत्कथा कोश, त्रियष्ठिस्मृति, आत्मसिद्धि, सज्जनचित्तवलय, नामक माहित्य कृतियाँ आप ही को है। निरपेक्ष, उदात्त हेतु से किये गये आपके जिनवाणी प्रकाशन के लिए आपको जितनी प्रशसा की जाय, थोडी ही है। आपका महावीर चरित्र के विषय मे साधार जानकारी एकत्र करने का कार्य चल रहा है। आपको यह स्वतत्र रचना चरित्रग्रथो मे उच्च कोटि का स्थान ग्रहण करेगी। इस पुस्तक की भूमिकाएँ देशभक्त अण्णासाहब लट्ठ एम० ए० तथा