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मराठी साहित्य की कहानी
५१६ 'ययार्यदीपिका, जो कि ज्ञानेश्वरी को हो भाति गीता को टोका है। भावार्थदीपिका उम' टीका की और टीका है। गजेंद्रमोन (रामदास के शिष्य रगनाथस्वामी द्वारा लोकप्रिय बनाये गये विषय पर भावप्रचुर रचना), सीतास्वयवर, कात्यायतीव्रत, वनसुवा और रावाविलास वामन पडित के अन्य भावप्रवान ग्रथ है। वामन पडित की कविता मे मराठी काव्य मे विचार और भावना जैसे दो शैलियां ग्रहण करते हैं और नतो द्वारा परिचालित विचार भावना का मधुर ऐक्य मानो टूट जाता है । वामन पडित के समकालीन नागेश और विट्ठल ने श्लोक-शैली में सीतास्वयवर और रुक्मगी-स्वयवर काव्य रचे है । जयराम आनदतनय और रघुनाथ पडित (जिनके निश्चित काल के सवव में विद्वानो में मतभेद हैं) इमी प्रवृत्ति के उत्तरकालीन कवि है। रघुनाथ पडित का 'नल-दमयन्ती स्वयवराल्यान', नरोत्तमदाम के 'सुदामा-चरित्र' की भाति रसयुक्त और प्रसगो का यथातथ्य चित्रण करने वाला अनेक छन्दो मे लिखा ग्रय है। कचेश्वरवापा, निरजनमाधव, सामराज, श्रीधर, महीपति आदि अन्य कई कवियो के पश्चात् महत्वपूर्ण उल्लेखनीय कवि हैं मोरोपत (१७२६-१७६४ ईस्वी)।
मोरोपत रामचन्द्र पराडकर पन्हालगड पर जन्मे। केशव पाध्ये उनके गुरु थे। बाद में पेशवाओ के समधी और साहूकार नाईक के घर आपने कथा-वाचको की । कुछेक काल मुशी भी रहे। समग्र महाभारत, भागवत, रामायण आपने 'आर्या' वृत्त में मगठी में उतारे परतु रामायण, मत्ररामायण, आदि १०८ रामायण आपने लिखे थे, ऐसा कहा जाता है। युद्ध-प्रमग, मवादप्रेम, वात्सल्य और करुणरस के प्रसगो का वर्णन आपने बहुत ही कमाल के साथ किया है। रचना अविकाश सस्कृतसमासप्रचुर है। आप अपने तुको के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। ईश्वरस्तुति पर पृथ्वीचन्द में केकावलो' नामक काव्य आपकी म्वतत्र रचना है। पेशवाओ के राज्यकाल के उत्तरकाल में अन्य कई कवि हो गये, जिनमें मे मुख्य-मुख्य नाम है-नारायग कवि दाजीवा जोशीराव, रामचन्द्र बडवे, रघुनाथ पत, कोशे, माहिरोबानाथ ऑविये आदि। इनमे अतिम कवि सिंधिया के दरवार मे थे । वह गोआ की ओर के रहने वाले थे और 'महदनुभवेश्वरी' नामक उनकी रचना रहस्यवादी है। . जवपत-कवियोने कविता कोयात्रिक और इतिवृत्तात्मक बना डाला तब स्वाभाविक रूप से कविता के रचनाकागे में दो वर्ग निर्मित हो गये-एक तो वडे-बडे विद्वान, व्युत्पन्न सस्कृत पडित थे, दूसरी ओर थे जन-कवि । जनता का कवि वोरो की गाथा गाता निपाहियो के मनोरजन के लिए शृगारपूर्ण नाट्यात्मक भावगीत भी लिखता । वह कभी-कभी पडित कवियो की नकल मे तुको का जाल विछाता, दूसरी ओर भाषा की चिंता न करते हुए उर्दू के रग में इश्क की शायरी का जिक्र करता, नाजुकखयाली और वदिश मे उलझता, तो तीसरी ओर महाराष्ट्र की भूमि-गत और जाति-गत रीति-रिवाजो, लोकोक्तियो-वाक्यप्रचारो, रहन-सहन की वैशिष्ट्यपूर्ण पद्धति का हूबहू चित्रण करता। इस कारण ने गाहीर कवियो के वीरश्रीपूर्ण पोवाडे' (आल्हा के ढग पर 'बैलेड्स') जहां एक ओर श्रवणीय है वहां दूसरी ओर उन्ही की शृगार से भरपूर, कभी-कभी तो अश्लील ऐसी 'लावणियाँ' (कजरी, होली जैसे गीत)चित्र-काव्य की सुन्दर प्रतिमाएं है। गाहिरोने मराठा-पेशवा राज्य के उत्तरकाल के रण-रग और रस-रग का ययार्थ प्रतिबिंब कविता मे उतार रक्खाहै, बिना किसी लागलपेट के । ग्राम-गीतो की वह परपराजो पडित कवियो के विद्वत्ता के ग्रीष्मातप में सूखती जा रही थी, उसे शाहिरो ने पुनर्जीवन दिया, पुन हराभरा किया।
अवतक उपलब्ध ऐतिहासिक गेय वीर-काव्य 'पोवाडे-३०० है । शिवाकाल से साहू तक के सात पेशवे काल के डेह-मौ और बाकी १८०० ईस्वी के बाद के। उनमें अज्ञानदास' का 'अफजलखा-वव' और तुलसीदास का 'तानाजी मालुसरे' का पोवाडा बहुत प्रसिद्ध है। दोनो शिवाजी-कालीन है। दूसरे कालखड में पानीपत के सग्राम (१८१८ ईस्वी) और खाडी की लड़ाई को लेकर बहुत से पोवाडे हैं। ये गाहीर भाट-चारणो की भाति गुणीजनो के आश्रित थे। उत्तर पेशवाई के जो शाहीर प्रसिद्ध है, उनमे प्रमुख है-रामजोशी (१७५८-१८१२ ईस्वी), कीर्तनकार, अनतफदी (१७४४-१), होनाजी बाला, ग्वाला सगनभाऊ 'तमाशा' वाले (२-१८४०) शिकलगर मुसलमान, प्रभाकर दातार (१७५४-१८४३), परशराम दर्जी। विभिन्न जातियो के ये जन-कवि आधुनिक मराठी