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'माणिकचन्द्र अन्यमाला' और उसके प्रकाशन
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२९-३०-३१ पमचरितम् (तीन जिल्दो में) : ग्रन्यकर्ता आचार्य रविषेण । इसमें कवि ने जैन रामायण का रूप चित्रित किया है । २५ पर्व है । म० १९८५ । यशोधक प० दरवारीलाल जी साहित्यरत्न । मूल्य तीनो भागो का साढे पाँच रुपया।
३२-३३. हरिवशपुराणम् (दो जिल्दों में) : ग्रन्थकर्ता पुन्नाटसघीय जिनसेनसूरि । इसमें हरिवश के महापुरुषो का पौराणिक पद्धति के अनुसार वर्णन है । मशोधक पडित दरवारीलाल जी न्यायतीर्थ । पृष्ठ संख्या ८०६ । मूल्य साढ़े तीन रुपया।
३४. नीतिवाक्यामृतम् (परिशिष्ट भाग) : इसमे 'नीतिवाक्यामृत' की खडित टीका का अवशिष्ट अश है। पृष्ठ सख्या ७६ । मूल्य चार आना।
३५. जम्बूस्वामिचरितम् अध्यात्मकमलमार्तण्डश्च • ग्रन्यकर्ता पडित राजमल्ल । इसमें अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामी का जीवनचरित है। मशोधक प० जगदीशचन्द्र शास्त्री एम० ए० । म० १९६३ । पृष्ठ मख्या २६३ । मूल्य डेढ रुपया।
३६ त्रिषष्ठिस्मृतिपुराण (मराठी टीका सहित) : मूल-ग्रन्य-कर्ता १० आशाधर और मराठी-टीकाकार श्री मोतीलाल जैन । इसमे जैनपरम्परा के श्रेष्ठ महापुरुषो का संक्षिप्त परिचय है । पृष्ठ संख्या १६५, मूल्य आठ आना। - ३७-४१-४२ महापुराणम् (तीन जिल्दो में): ग्रन्थकार महाकवि पुष्पदन्त । यह अपभ्रंश भाषा का पौराणिक ग्रन्थ है । डाक्टर पी० एल० वैद्य ने आधुनिक ग्रन्थ-सम्पादनशैली स सम्पादित किया है । इसमें ६३ शलाका पुरुषो का चरित है। पृष्ठ संख्या लगभग १६०० । मूल्य २६ रुपया।
३८-३६. न्यायकुमुदचन्द्रोदय (दो जिल्दों में) : ग्रन्यकर्ता आचार्य प्रभाचन्द्र, जिन्होने भट्टाकलक के 'लघीयस्त्रय' पर विस्तृत भाष्य के रूप में इस ग्रन्य की रचना की है। यह जैनन्याय का ग्रन्थ है। मम्पादक पडित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य और प्रस्तावना-लेखक प० कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री। पृष्ठ संख्या ८०५ और प्रस्तावनामो की पृष्ठ सम्या २०० । स० १९९५ । मूल्य साढे सोलह रुपया ।।
४०. वराङ्गचरितम् : महाकाव्य है । काव्यकार श्री जयसिह नन्दि । इसमें राजकुमार वराङ्ग के जीवन का चित्रण है । सम्पादक डाक्टर ए० एन० उपाध्ये । पृष्ठ मख्या ३६५ । प्रस्तावना पृष्ठ मख्या ८८ । स० १९६५ । मूल्य तीन रुपया।
माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला के प्रकाशनो का यह सक्षिप्त परिचय है। जो महाशय इन ग्रन्यो से अधिक परिचित होना चाहते है और जैन-साहित्य के विद्यार्थी है, उन्हें अन्यमाला के सम्पूर्ण प्रकाशनो को एक बार अवश्य पढना चाहिए।
प्रेमी जी और 'माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला' सेठ माणिकचन्द्र की स्मृति में 'माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला' के आयोजन का प्रस्ताव रख कर प्रेमी जी ने इस ग्रन्थमाला को जन्म ही नहीं दिया, बल्कि इसे अब तक सदित और मरक्षित करके इसके कार्य को प्रगति दी और इसके गौरव की अभिवृद्धि भी की।
ग्रन्यमाला का प्रत्येक प्रकाशन प्रेमी जी की प्रतिभा और उनके पुण्य श्रमजल से प्रोक्षिन है। अधिकाश अन्यो के प्रारम्भ में जो महत्त्व की प्रस्तावनाएँ है, उन्हें प्रेमी जी ही ने लिखा है और उनमे जैन-इतिहास और शोध की जो सामग्री सचित है उसे देख कर कोई भी इतिहास-विशारद प्रेमी जी की प्रशमा किये बिना नहीं रह सकता। जैन समाज में किये गये इतिहास और शोध सम्बन्धी कार्य के आदिरूप की झांकी हमें इस ग्रन्थमाला के प्रकाशनो में ही दिखलाई पड़ती है।