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'माणिकचन्द्र ग्रन्यमाला' और उसके प्रकाशन
५०७ तृतीय नियम इसलिए वनाना पडा कि ग्रन्यमाला की वर्तमान पूंजी जो चन्दे से उपलब्ध हुई थी, कम थी और ग्रन्यमाला द्वारा प्रकाशित ग्रन्थो को लागत मूल्य पर वेचने का निश्चय हुआ था। इसलिए कुछ और सहायता मिल सके, इस विचार से यह नियम रक्खा गया और इसका प्रभाव भी पडा। प्रारभ के अनेक प्रकाशन साधन-सम्पन्न वधुओ ने अपने चित्र देकर खरीदे और इस प्रकार ग्रन्यमाला को सहायता पहुंचाई । माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला' की स्थापना का सक्षेप मे यही इतिहास है।
ग्रन्थमाला के प्रकाशन और उनकी उपयोगिता ___ इस ग्रन्थमाला द्वारा अवतक मस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश भाषा के छोटे-बडे व्यालीस ग्रथ प्रकाशित हो चुके है ? जैन वाड्मय के इन अमूल्य ग्रन्यो की गोध कर उन्हे सुसम्पादित और प्रकाशित करने का सर्वप्रथम श्रेय इस अन्यमाला को ही प्राप्त है। यद्यपि प्रस्तुत ग्रन्थमाला के प्रारम्भिक प्रकाशन आधुनिक सम्पादन-पद्धति के अनुसार सम्पादित नही हुए है, तथापि अतिम छह ग्रन्थो का जो सर्वाङ्गपूर्ण सुन्दर सम्पादन हुआ है, वह बडे ही महत्त्व का है । यही कारणहै कि वम्बई यूनिवर्सिटी ने इस माला के तीन ग्रन्यो के प्रकाशन में एक सहस्र रुपये की सहायता पहुंचा कर ग्रन्यमाला के गौरव की श्रीवृद्धि की है।
प्रारभिक प्रकाशन आधुनिक ग्रन्य-सपादन शैली के अनुसार सम्पादित नहीं हो सके, उसके दो कारण थे। प्रयम तो प्रकाशनार्थ ग्रन्यो की विभिन्न पाण्डुलिपियाँ ही दुष्प्राप्य रही। फलत कई ग्रन्थो का सम्पादन केवल एक ही प्रति के आधार पर कराना पड़ा। दूमरे उस समय विद्वान् सम्पादन नवीन पद्धति से उतने परिचित नही थे। फिर भी ग्रन्यमाला के प्रकाशनो की महत्ता और उपयोगिता मे किसी प्रकार की कमी नही पाने पाई। इस रूप में प्रकाशित होने पर भी वे मूल्यवान और महत्वपूर्ण होने के साथ सग्राह्य और उपादेय है। यहां हम ग्रन्थमाला के सम्पूर्ण प्रकाशनो का सक्षिप्त परिचय दे रहे है।
१. लघीयस्त्रयादिसग्रह : इसमें जैन-दर्शन-सबधी चार ग्रथ सगृहीत है -
(१) भट्टाकलकदेवकृत लघीयस्त्रय अभयचन्द्र सूरि-रचित तात्पर्यवृत्तिसहित। प्रमाण, न्याय आदि विषयक एक छोटा-सा प्रकरण।
(२) भट्टाकलकदेव-कृतस्वरुप सवोधन • आत्मा के स्वरूप के बारे मे पच्चीस श्लोक । (३-४) अनतकीतिकृत लघुसर्वज्ञसिद्धि और वृहत्सर्वज्ञसिद्धिः सर्वज्ञता के जैन-सिद्धान्त का विश्लेपण।
इस ग्रथ का सशोधन स्व० पडित कल्लापा भरमाप्पा निटवे ने किया है। पृष्ठ संख्या २०४ । मूल्य छ माना। प्रकाशन तिथि वि० स०१९७२।
२ सागरधर्मामृतम् . अथकर्ता प० आगाधर, जो तेरहवी शताब्दी के महान लेखक थे । इस ग्रन्थ मे गृहस्थ के कर्तव्यो पर उन्होने प्रकाश डाला है। स्व०प० मनोहर लाल जी द्वारा सशोधित । श्री नाथूराम जी प्रेमी की आशाधर तथा उनकी रचनाओं के विषय में भूमिका भी है। पृ० २४६ । मूल्य आठ आना। स० १९७२ ।
३. विक्रान्तकौरवनाटकम् या सुलोचना नाटकम् छ • अको में कुरुवशी जयकुमार और काशी के महाराज अकम्पन की पुत्री सुलोचना के पारस्परिक अनुराग और स्वयवर आदि का चित्रण है । ग्रथकार उभय भाषा कवि चक्रवर्ती हस्तिमल्ल है। पृष्ठ १६४ । मूल्य छ पाना स० १९७२। (अप्राप्य)।
४. पार्श्वनाथ चरितम् दसवी शताब्दी के महान् कवि और तर्कशास्त्री वादिराजसूरि कृत । इस काव्यग्रन्थ के बारह सर्गों में भगवान पार्श्वनाथ का जीवन चरित है । मशोधन-कर्ता स्व० प० मनोहरलाल शास्त्री। पृष्ठ १९८ । मूल्य आठ आना । स० १९७३ ।
५ मैथिलीकल्याणनाटकम् : पांच अको का एक छोटा सा नाटक । लेखक हस्तिमल्ल । पृ० ६६ । मूल्य चार आना। स० १९७२ । सशोधक स्व० प० मनोहरलाल शास्त्री।