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________________ जैन - साहित्य का भौगोलिक महत्तव ४७५ ( कौशल ), ७ गजपुर ( कुरु), ८ सौरिक ( कुशावर्त ), 8 कापिल्य ( पाचाल ), १० अहिच्छत्र ( जागल ), ११ द्वारवती द्वारिका (सौराष्ट्र), १२ मिथिला (विदेह), १३ कौशाम्बी ( वत्स ), १४ नदीपुर (शाडिल्य ), १५ भद्दिलपुर ( मलय ), १६ वैराटपुर ( वत्स, मत्स्य २ ), १७ अच्छापुरी ( वरण), १८ मृत्तिकावती ( दशार्ण), १९ शौक्तिकावती ( चेदि), २० वीतभय (सिंधसौवीर), २१ मथुरा ( शूरसेन), २२ पापा (भग) २३ परावर्त्ता (मास), २४ श्रावस्ती ( कुणाल ), २५ कोटी वर्ष ( लाट), २६ श्वेताविका ( श्रर्घ केकय ) ।' ज्ञाता धर्मकथा नामक छठें अगसूत्र में भी मेघकुमार के प्रसग में निम्नोक्त देशो की दासियो का उल्लेख पाया जाता है : वर्वर, द्रमिल्ल, सिंहल, अरब, पुलिंद, बहल, गवर, पारस, वकुसि, योनक, पल्हविक, इसिनिका, धोरुकिनी, लासिक, लकुसिक, पक्वणी, मुरुडि । इस सूत्र के मल्लि अध्ययन में कोशल, अग, काशी, कुणाल, कुरु, पाचाल, विदेह, आदि देशो के नाम है । इसी प्रकार उइवाइ सूत्र में अनेक देशो की दासियो का उल्लेख है । विभिन्न ग्रन्थो मे नाम मग्रह करने का उद्देश्य हैं, उनके पाठान्तरो की ओर विद्वानो का ध्यान आकर्षित करना । इनमें से कई देश तो प्रसिद्ध है । अवन्ति देशो के वर्तमान नामादि पर प्रकाश डालने का विद्वानो से अनुरोध है । मध्यकालीन साहित्य मे देशो के नाम देशो की संख्या बढते - वढते ८४, जो कि प्रसिद्ध एव लोकप्रिय सख्या है, तक जा पहुँची । स० १२८५ के लगभग विनयचन्द्र रचित काव्य शिक्षाग्रन्थ में ८४ देशो का उल्लेख है -- चतुरशीतिर्देशा गौड —— कान्यकुब्ज —— कौल्लाक- कलिंग —— प्रग— वग——कुरग - आचाल्य ( ? ) – कामाक्ष - प्रोडू --पुड़ -- उडीग - मालव- लोहित - पश्चिम - काछ — वालम — सौराष्ट्र — कुकण - लाट —— श्रीमाल --- 'देखिए प० बेचरदास द्वारा अनुवादित 'भगवान महावीर नी धर्मकथाश्रो पृ० २०७ । जवृद्वीप प्रन्नप्तिसूत्र में भी इन देशो के नाम की सग्रहगाथा इस प्रकार पाई जाती है खुज्जा, चिल्लाई, वीमणि, बडभीश्रो, वन्वरी, वडसियाश्रो । जोणिय, पन्ववियानो, इसिणिया, चारू किणि या (१) लासिय, लउसिय, हामिली, सिहल्लीतह अफवि पुलिंदीऊ । पक्वाणि वलि मुरडी सबरी पारसियाओ (२) । इसी ग्रन्थ में भरत चक्रवर्ती के दिग्विजय के अधिकार में भी सिंहल, वर्बर, प्रारब, रोम, अलसड, पिक्खुर, कालमुख, जोनक, चिलात श्रादि देशों एवं वैताद्य आदि पर्वतो का उल्लेख एव विविध भौगोलिक सामग्री पाई जाती है। तत्वार्थ भाष्यवृत्ति के अध्याय ३ सूत्र पन्द्रहवें की व्याख्या में शक, यवन, किरात, काबोज, वाल्हीकादि को अनार्य बतलाया गया है । प्रज्ञापना सूत्र के श्राधार से ही प्रवचन सारोद्धार के २७४- २७५वे अधिकार में प्राय उन्हीं २६ श्रार्य देशों, उनकी नगरियो एव म्लेच्छ देशों के नाम दिये है (गाथा १५८३ से ६५) । इसी प्रकार श्रावश्यकसूत्र में भी अनार्य देशों के नाम है । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने अपने त्रिसष्टिशलाका पुरुषचरित्र ( पर्व २ सर्ग ४) में निम्नोक्त देशों के नाम दिये है -- द्राविड, अध्र, कलिंग, विदर्भ, महाराष्ट्र, कोकण, लाट, कच्छ, सोरठ, म्लेच्छ-सिंहल, बर्बर, टकण, कालमुख, जोनक, यवनद्वीप, कच्छदेश । श्रादन, हावस, मुगदि, सुंघनगिरि, सीकोत्तर, चोलनार, पाडध, तालीउ, त्रिहूति, भोट, महाभोट, चीण, महाचीण, बगाल, खुरसाण, मगध, वच्छ, गाजणा ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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