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श्रीदेवरचित 'स्याद्वादरत्नाकर' में अन्य ग्रन्थों और ग्रन्थकारो के उल्लेख
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क्या यह शकरनन्द वही काश्मीरी ब्राह्मण शकरानन्द है, जिसने वौद्ध ग्रन्थ - प्रमाणवार्तिकटीका, पोहसिद्ध यदि लिखे है
?
भाग ४ पृ० ९५७ शर्करिका हमें यहाँ निम्नलिखित उद्धरण मिलता है-- यत्तु 'प्रत्येक समवेतार्थ' इत्यादि कारिका व्याख्याया जयमत्र शर्करिकाया प्राह-- 'गोमति धर्मिणी, कृत्स्नवस्तुविषयेति साध्यो धर्म कृत्स्नरूपत्वादिति हेतु । या या कृत्स्नरूपा सासा कृत्स्नवस्तुविषया, व्यक्तिबुद्धिवदिति दृष्टान्त' इति ।
यह कारिका कुमारिल के ग्लोकवार्निक (वनवाद, ग्लोक ४६ ) मे मे दी गई है। शर्करिका उम भाप्य का नाम है जो जयमिश्र ने ग्लोकवानिक पर लिखा है और जो उम्बेक के भाष्य के आगे लिखा गया है । अत ऊपर के उद्धरण में पहली पक्ति का शुद्ध पाठ जय मिश्र शर्करिकाया प्राह — होना चाहिए । श्रीदेव के द्वारा जो प्रश दिया गया है वह गर्करिका के मद्रास युनिवर्मिटी नम्करण मे पृ० ३२ मे मिलता है । श्रीदेव द्वारा दिया हुआ यह उरण महत्त्वपूर्ण हैं, क्योकि अब तक केवल यही बाह्य प्रमाण उपलब्ध हो सका है, जिसमे जयमिश्र की गर्करिका का उल्लेख है |
भाग २, पृ० ४७५ | भदन्त शाकटायन के केवल मुक्ति प्रकरण में मे यहाँ एक लम्वा ग्रा उद्धृत है । भाग १, पृ० ६१, ११२-१५ । मीमानाकार शालिकनाथ, प्रकरणपत्रिका के लेखक, का कथन यहाँ किया
गया है ।
भाग २, पृ० २३६, भाग २, पृ० २८८, ३१८ श्रादि
श्रीघर कन्दली नामक न्यायग्रन्थ के लेखक, का यहाँ कई वार ज़िक्र है ।
भाग ३, पृ० ६४ε| सग्रहकार । व्याडि नामक वैयाकरण का यहाँ उल्लेख है, जिसके ग्रन्थ मे भर्तृहरि 'अपने ग्रन्थ वाक्यपदीय तथा उसकी वृत्ति म उद्दरण लिये है । जिम कारिका को यहाँ श्रीदेव ने यह कह कर उद्धृत किया है कि वह संग्रहकार की 'ययाद्यमन्या' आदि है, वह वाक्यपदीय (१,८८) मे मिलती है ।
पृ० ६४५ यदाह मग्रहकार - शब्दम्य ग्रहेण हेनु यादि । इमको भर्तृहरि ने अपनी वृत्ति मे मग्रहकार की लिखी हुई कहा है ( पृ० ७८-६, चडीदेव शास्त्री द्वारा वाक्यपदीय का लाहौर मस्करण, भाग १ ) ।
भाग १, पृ० ६२ । समतभद्र । यह प्रसिद्ध जैननैयायिक है जिसने तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर गन्धहम्ति - महाभाष्य की रचना की है।
भाग २, पृ० ४६७ सर्वार्थसिद्धि । नत्त्वार्थमूत्र पर पूज्यपाद देवनन्दिन् कृत भाष्य । श्रीदेव ने इसका asन किया है ।
भाग १, पृ० ८६ हरिभद्रसूरि कृत शास्त्रवार्तासमुच्चय में यहाँ उद्धरण दिया गया है । अध्याय ५ के अन्त मे श्रीदेव ने अपने गुरु मुनिचन्द्र का उल्लेख किया है, जिन्होंने हरिभद्रसूरि के उक्त ग्रन्थ पर एक टीका लिखी थी ।
भाग २, पृ० २९२ हरिहर नामक नैयायिक का उल्लेख है यत्तु हरिहर प्राह-न च दुर्बल उत्तेजकमन्त्र स्तम्भकमन्त्रस्य प्रतिपक्ष । तस्मिन् सत्यपि स्तम्भकमन्त्रस्य कार्यकरणदर्शनात् ।
भाग १, पृ० १०३ मे ममारमोचको का उल्लेख है, जिन्हें सम्पादक ने ब्रह्माद्वैतवादी माना है । जयन्त की 'न्यायमजरी' में ममारमोचको का कथन बौद्धो के माथ किया गया है और उनके विषय में लिखा है कि वे पापकर्मो तथा आगमी का प्रचार करते और प्राणिहिमा में रत रहने हैं, तथा वे स्पर्श के योग्य नही है -
ये तु सीगत ससारमोचकागमा पापकाचारोपदेशिन व्यस्तेषु प्रामाण्यमार्योऽनुमोदतेससारमोचका पापा प्राणिहिंसापरायणा । मोहप्रवृत्ता रावेति न प्रमाण तदागम ॥
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