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जैन प्रथो में भौगोलिक सामग्री और भारतवर्ष में जैन-धर्म का प्रसार
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स्थल था । यहाँ अनेक पाखडी साधु रहते थे । श्रतएव मथुरा को पाखडिगर्भ कहा जाता था ।' जैनसूत्रो का सस्करण करने के लिए मथुरा में अनेक जैन श्रमणो का सघ उपस्थित हुआ था । यह सम्मेलन माथुरी वाचना के नाम से प्रसिद्ध है । मथुरा भडीरयक्ष की यात्रा के लिए प्रसिद्ध था । यह नगर व्यापार का बडा भारी केन्द्र था और विशेषकर वस्त्र के लिए प्रसिद्ध था । यहाँ के लोग व्यापार पर ही जीवित रहते थे, खेती-बाडी पर नही ।" यहाँ स्थलमार्ग से माल आता-जाता था । मथुरा के दक्षिण-पश्चिम की ओर महोली नामक ग्राम को प्राचीन मथुरा बतलाया जाता है ।
२२ भाग (पापा)
सम्मेदशिखर के आसपास का प्रदेश, जिसमें हज़ारीबाग और मानभून जिले गर्भित है, प्राचीन समय में भगदेश कहा जाता था । इसकी राजधानी पापा थी, जो कुशीनारा के पास अवस्थित मल्लो की पापा नगरी से तथा बिहार के पास की महावीर की मोक्षभूमि मज्झिमपावा अथवा पावापुरी से भिन्न है ।
२३ वट्टा ( माषपुरी)
माषपुरी जैन श्रमणो की एक शाखा थी ।" इस प्रदेश का ठीक-ठीक पता नही चलता ।
२४ कुणाल (श्रावस्ती )
जैन-ग्रन्थो के अनुसार कुणाल नगरी अचिरावती नदी मे वाढ आ जाने के कारण नष्ट हो गई थी, जिसकी पुष्टि वौद्ध ग्रन्थो से होती है ।" कहते हैं कि इस घटना के तेरह वर्ष पश्चात् महावीर ने केवलज्ञान प्राप्त किया । श्रावस्ती में पार्श्वनाथ के अनुयायी केशिकुमार तथा महावीर के अनुयायी गौतम का सम्मेलन हुआ था, जिसमें पार्श्व और महावीर के सिद्धान्त - सम्वन्धी अनेक प्रश्नो पर चर्चा होने के पश्चात् दोनो धर्मप्रवर्त्तको के सिद्धान्तो में समन्वय किया गया था ।" महावीर ने अनेक बार श्रावस्ती मे विहार किया । बुद्ध ने भी यहाँ बहुत-सा काल व्यतीत किया था । अचिरावती (राप्ती) नदी के किनारे सहेट-महेट नामक स्थान को प्राचीन श्रावस्ती माना जाता है, जिसका उल्लेख जिनप्रभ सूरि ने अपने विविधतीर्थंकल्प में 'महेठि' नाम से किया है । "
२५ लाढ (कोडिवरिस )
लाढ अथवा राढ देश दो भागो में विभक्त था - एक वज्रभूमि ( वीरभूमि), दूसरा शुभ्रभूमि ( सिंहभूम ) । महावीर ने इन दोनो प्रदेशो मे विहार किया, जहाँ उन्हें अनेक कष्ट सहन करने पडे थे । लाढ में बहुत अल्प गाँव थे,
१ 'श्राचाराग चूर्णि, पृ० १६३ नन्दि चूर्ण, पृ० ८
'श्रावश्यक टीका (हरिभद्र ), पृ० ३०७
'बृहत्कल्पभाष्य ११२३६
'श्रमण भगवान् महावीर, पृ० ३७ε
कल्पसूत्र ८, पृ० २३०
देखिए श्रावस्ती इन एनशिएन्ट लिटरेचर, ि
११ 'उत्तराध्ययनसूत्र २३ ३ इत्यादि
१०
चूर्णि, पृ० २८०
चूर्ण, पृ० २८१
चूर्ण, पू० ६०१
लॉ, पृ० ३१
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