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हिन्दू-मुस्लिम सवाल का आध्यात्मिक पहलू
२०६ को स्वाहिग उन चीज़ो में मे है, जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम-मवाल को पैदा किया और बढाया। हमें हिन्दी और उर्दू दोनो को हिन्दुस्तानी भाषा मानना होगा। दोनो से प्रेम करना होगा और दोनो के मच्चे मगम मे एक राष्ट्र-मापा हिन्दुस्तानी को रूप देना, वढाना और मालामाल करना होगा। इसी तरह अपनी राष्ट्रीय मस्थानो, काग्रेसो, कान्फ्रमो, स्कूलो, कालेजो वगैरह मे हम मिले-जुले तरीके और इस तरह के ढग वरतने होगे, जो सब धर्मो और मजहबो के देशवामियों को एक-से प्यारे लगें। हम ऊपर लिख चुके है कि हम आज से चन्द पीढी तक इसी तरह की एक मिली-जुली समाजो जिन्दगी और मिली-जुली कल्चर की तरफ बढ रहे थे। हमे अपनी उस योटे दिन पहले की प्रवृत्ति को फिर से ताजा करना होगा।
__दूसरी वात,जो हमे समझनी है, वह इसमे भी ज्यादा गहरी है । और वह इस हिन्दू-मुस्लिम सवाल का प्राध्यात्मिक यानी रूहानी पहलू । दुनिया के अलग-अलग धर्मों के कायम करने वाली ने अगर किमी बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया है तो वह यही है कि सब इन्सान एक कोम है, हम सब मिलकर एक छोटा-सा कुटुम्ब है, सब एक जिम्म के अलग-अलग अगो की नरह है। सव का एक ही ईश्वर या अल्लाह है। ईश्वर एक है और मव उसी के वन्दे है तो जाहिर है कि सबका धर्म भी एक ही है। फिर ये अलग-अलग धर्मों के फरक क्यो? इन धर्मों के इतिहास और उनकी पाक कितावो को प्रेम के साथ देखने में माफ़ पता चलता है कि इन मव धर्मों और मत-मतान्तरो के मूल तत्त्व एक है। इनमें फरक सिर्फ या तो उन अटकली वातो मे है, जिनमें आदमी का दिमाग पाखिरी फैमले नहीं कर पाता, जमे जीव और ब्रह्म का एक होना या दो होना, नरक और स्वग की कल्पनाएं वगैरह, और या ऊपरी रीति-रिवाजो और कर्मकाण्डो में है, जैमे पूरब की तरफ मुंह करके पूजा करना या पच्छिम की तरफ मुंह करके, सस्कृत में दुग्ना मांगना या अरवी में। ये सवं फरक गौण है। हमे इनमे ऊपर उठकर और इनके भीतर मे मव धर्मों की मौलिक एकता को माक्षात् करना होगा। इतना ही नहीं, हम यह समझना होगा कि खुदा की नज़रो में दुनिया की कोई भापा दूसरी भाषा में ज्यादा पवित्र नहीं है। कोई कारो रीति-रिवाज दूसरे रीति-रिवाज मे ज्यादा पाक नहीं है। आदमी, आदमी है। हमें मत्र धर्मों के कायम करने वाले महापुरुषों को इज्ज़त करनी होगी, उन सब को अपनाना और उन्हें मानवममाज के सच्चे हितचिन्तक और मार्ग-प्रदर्शक मानना होगा, मव धर्म-पुस्तको को प्रेम के साथ पढना और उनमे सवक हासिल करना होगा । इन धर्मों और कितावी के फरक मव देश और काल के फरक है। हमे इनसे ऊपर उठकर मव धर्मों के मार यानी उम मानव-वर्म, उस प्रेम-धर्म, उम मजहवे-इश्क, उस मजहवे-इमानियत को माक्षात् करना होगा, जो अाजकल के मव मन-मतान्तरो को जगह भावी मानव-समाज का एकमात्र धर्म होगा, जिसकी बुनियादे सच्चाई, सदाचार और प्रेम पर होगी और जो सव के अन्दर एक ईश्वर के दर्शन करते हुए आध्यात्मिक जीवन की उन गहराइयो तक पहुँचने और उन समस्याओं के हल करने की कोशिश करेगा, जिन तक पहुंचना और जिनका हल करना इस पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन का अन्तिम और अमला लक्ष्य है। यही वह कीमती सवक है, जो कुदरत हम आजकल की इस छोटो मी हिन्दू-मुस्लिम समस्या के जरिये मिखाना चाहती है। हमारा देश इम ममय इसी सच्चे मानवधर्म को पैदा करने को प्रसववेदना में से होकर निकल रहा है । मारा मसार शुभ दिन की बाट जोह रहा है। इलाहाबाद
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