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जायसी का पक्षियो का ज्ञान
धौरी पड़क कहु पिउ नाऊँ, जौं चितरोख न दूसर ठाऊँ । जाहि वया होइ पिउ कठलवा, कर मेराव सोइ गौरवा । कोइल भई पुकारति रही, महरि पुकारे "लेइ लेह दही " । पेड तिलोरी श्री जलहसा, हिरदय पैठि विरह कटनसा ।
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जेहि पखी के नियर हूं, कहँ विरह के बात । सोई पखी जाइ जरि, तरिवर होय निपात ॥ कुहुक हुकि जस कोइल रोई, रक्त प्रांसु घुंघची वन बोई । मै करमुखी नैन तनराती, को सेराव, विरहा दुख ताती । जह जह ठाढ होइ वनवासी, तहँ तहँ होइ घुंघुचि के रासी । बूँद बूँद महँ जानहु जीऊ, गुजा गूंजि करें "पिउ पीऊ" । तेंहि दुख भरे परास निपाते, लोहू वूडि उठे हूँ राते । राते बिंव भीजि तेहि लोहू, परवर पाक फाट हिय गोहू । देखों जहाँ होइ सोइ राता, जहाँ सो रतन कहै को बाता । नह पावस श्रोहि देसरा, नहि हेवन्त वसन्त । ना कोकिल न पपीहरा, जेहि सुनि श्रावै कन्त ॥
कितना सजीव वर्णन है । विरहाग्नि से पक्षियो के भस्म हो जाने में अतिशयोक्ति अवश्य है, लेकिन "रकत आँसु घुंघची वन बोर्ड” कैमी सुन्दर युक्ति वन पडी है । जायसी ने कोयल को बोली के लिए और कौए तथा हस को रग की तुलना के लिए नही याद किया है, बल्कि देहात में स्त्रियो को अपने प्रिय के आगमन के वारे में जो अन्धविश्वास है उसका स्वाभाविक वर्णन किया गया है। स्त्रियाँ कोएं को बैठा देख कर कहती है- "यदि मेरा प्रिय आने वाला हो तो उड जा ।” अगर सयोग से कौआ उस जगह से जल्द ही उड गया तो उनके हृदय में प्रिय के आने की आशा दृढ हो जाती है । कौए के लिए जायसी ने एक दूसरे स्थान पर और भी अनोखी उक्ति पेश की है
भोर होइ जो लागे उठहि रोर के काग ।
मसि छूटे सब रैन के कागहि कर प्रभाग ॥
जब प्रभात होने लगता है तो कौआ इसी लिए काँव-काँव करता है कि रात्रि की सारी कालिमा तो छूट गई, लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी स्याही पहले की तरह विद्यमान है ।
तीसरा स्थल है वादशाह भोज खड, जहाँ पक्षियों का वर्णन मिलता है । राजा ने वादशाह को दावत दी है। सभी, तरह के पकवान तैयार हो रहे हैं। बाग-बगीचे के पक्षियों का वर्णन श्रमराई में और जल के निकट रहने वाली चिडियो का वर्णन सरोवर के साथ हो ही चुका था । श्रत यहाँ जायसी ने सव प्रकार के शिकार के पक्षियो को एकत्र किया है ।
पुछार = (१) पूछने वाली (२) मोर, मयूर । चिलवाँस = चिडिया फँसाने का एक फन्दा । खरवान = (१) तीक्ष्ण वाण (२) एक पक्षी, खरबानक । हारिल = (१) हारी हुई, थकी हुई (२) हारिल पक्षी, हरियल धौरी == (१) सफेद (२) घवर पक्षी, फानता की एक जाति । पडुक= (१) पीला (२) पडकी । चितरोख= (१) चित्त में रोष (२) चितरोखा पक्षी, फासता की एक जाति । जाहि वया = सन्देस लेकर जा और फिर श्रा ( वया = ( श्रा) फारसी), (२) वया पक्षी । कठलवा = (१) गले में लगाने वाला (२) कठलवा पक्षी, लवा की एक जाति | गौरवा= (१) गौरवपूर्ण, वडा (२) गौरवा, चटक पक्षी । कोइल = (१) कोयला (२) कोयल पक्षी । दही - (१) दधि (२) दग्ध, जली । तिलोरी = तेलिया मैना । कटनासा = (१) काटता और नष्ट करता है (२) नीलकंठ, कटनास पक्षी । निपात = पत्रहीन । सेराव = ठढा करे । परास = पलाश ।
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