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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ उज्जैन में अग्नि वेताल का मन्दिर भी बना हुआ है। समस्त नगरवासी उस मन्दिर को इसी नाम से पुकारते है। वेताल की कथा के अनुरूप उसके भक्ष्य की शर्त की पूर्ति विक्रम की तरह आज भी न जाने कब से प्रति वर्ष नवरात्रि में राज्य की ओर से बलि-प्रदान के रूप में की जाती है। इस वलि प्रथा और मन्दिर को प्रत्यक्ष देखते हुए यह ज्ञात होता है कि उक्त 'वेताल-कथा' की पृष्ठ-भूमि में कोई तथ्य-घटना अवश्य है, जिसकी स्मृति-स्वरूप वेताल का यह मन्दिर पौराणिक अस्तित्व की साक्षी देता हुआ आज भी इस नगरी में खडा है। यदि वेताल की उक्त कथा केवल गल्प ही है तो इस मन्दिर और वलि-प्रथा की परम्परा और अवन्ती-पुराण, स्कन्द-पुराण की कथा की सगति का क्या अर्थ है ? पुराणो को नवी शती की रचनाएँ ही स्वीकृत की जाये तो भी यह तो स्वीकार करना ही पडेगा कि उस समय विक्रम और वेताल की कथा को इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त थी कि वे मन्दिर और पूजनीय स्थान की प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सके। उक्त ख्याति के वशीभूत होकर ही वेताल की इस समाधि का पौराणिक वर्णन सम्भव हुआ होगा।
एक बात और । विक्रम की नवरत्ल-मालिका में एक वेताल भट्ट का वर्णन पाया है। यह 'भट्ट' ब्राह्मण होना चाहिए। आश्चर्य नहीं कि वही वेताल, जो अप्रतिम सामर्थ्य रखता था, आगे विक्रम का सहायक हो जाने के कारण उसकी राज-सचालिका-सभा का एक विशिष्ट रत्न बन गया हो। ग्यारहवी सदी मे जिसे क्षेमकर और चौदहवी में जिसे मेस्तुग ने 'अग्निशिख' और 'अग्निवर्ण' वतलाया है, सभव है, यह वही वेताल-भट्ट हो। इतिहासान्वेपण-शील विद्वानों का ध्यान इस कथा और उज्जैन के वेताल मन्दिर के अस्तित्व की पोर तथ्यान्वेषक दृष्टि से आकर्षित होना आवश्यक है। यह अवन्ती का वेताल-स्मारक हमारा ध्यान सहसा आकृप्ट किये विना नही रहता।
मेरुतुग-वणित-प्रवन्ध में विक्रम के एक मित्र का नाम भट्ट मात्र बतलाया गया है। सम्भव है, भट्ट मात्र का नाम वेताल भट्ट ही हो और शाक्त-परम्परा के मानने वालो मे से होने के कारण बलि प्रथा की परम्परा आजतक उसके साथ जुडी हुई हो। यह भी सम्भव है कि विक्रम ने उसकी देश-प्रेम की उन भावना के वशीभूत हो हिंसक प्रवृत्ति की सहज मान्यता दे दी हो। यही चीज़ उस ब्राह्मण-वर्चस्व काल में शायद वेताल को भूत-प्रेत की श्रेणी में रखने का कारण वन गई हो। कुछ भी हो, वेताल या वेताल भट्ट अथवा अग्निशिख या अग्निवर्ण केवल रोचक कथा का नायक ही नही, कल्पित पात्र ही नहीं, अवश्य ही विक्रम के साथ योजित होने वाली कोई अपूर्व ओजस्वी राजनैतिक शक्ति थी, जो अपने स्मृति-स्थल का उज्जैन में आज भी अस्तित्व धारण किये इतिहासान्वेपणशीलो को अपनी ओर आमन्त्रित कर रही है। उज्जैन]