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पृथ्वीराजरासो की विविध वाचनाए
१३३ और नेनूराम' वाली स० १४५५ की प्रति इस नियम का अपवाद उपस्थित करती है, किन्तु कई विद्वानो के मतानुसार ___ इनका लिपिकाल सदिग्ध है । अत जवतक प्राच्यलिपिशास्त्रवेत्ता इनका निरीक्षण करके लिपिकाल निर्धारित नहीं करते, इनको इतना प्राचीन मानना उचित नहीं।
. निम्नोक्त वाते भी इसी अनुमान की पुष्टि करती है
(१) विषय-क्रम-कई स्थलो मे लघु वाचना का विषय-क्रम मध्यम अथवा वृहद् वाचना की अपेक्षा अधिक समीचीन दिखाई देता है । मध्यम तथा बृहद् वाचना के प्रथम समय में पहले मगलाचरण और फिर पृथ्वीराज के जन्म का वर्णन है और द्वितीय समय मे दशावतार-वर्णन है, किन्तु लघुवाचना में मंगलाचरण तथा दशावतार-वर्णन प्रथम समय में है और पृथ्वीराज का जन्म दूसरे मे । होना भी ऐसा ही चाहिए, क्योकि दशावतार-वर्णन मगलाचरण का रूपान्तर है और मगलाचरण सदा ग्रन्थ के प्रारम्भ में होता है । लघुवाचना के नायक पृथ्वीराज के जन्म-वृत्तान्त के पश्चात् ही तीसरे समय में नायिका सयोगिता के जन्म का वृत्तान्त पाता है, परन्तु मध्यम तथा बृहद्वाचनाओ मे इन दोनो वृत्तान्तो के बीच कई समयो का अन्तर है । वृहद्वाचना मे कन्नौज-खड के प्रारम्भ मे पृथ्वीराज का सयोगिता के लिए तडपना और साल भर तक एक-एक ऋतु में भिन्न-भिन्न रानियो द्वारा सयोगिता की प्राप्ति मे वाधाएँ उपस्थित करना कवि को षड्ऋतु-वर्णन का अवसर देते है, किन्तु लघु तथा मध्यम वाचनानो मे यही वर्णन पृथ्वीराज के सयोगिता को दिल्ली ले आने पर आता है। यह क्रम अधिक उचित प्रतीत होता है, क्योकि यदि पृथ्वीराज को सयोगिता से सच्ची लगन थी तो वह कदापि एक वर्ष तक उसे प्राप्त किये बिना न रुकता।
(२) बढती अनैतिहासिकता-लघुवाचना की अपेक्षा मध्यम मे तथा मध्यम की अपेक्षा वृहत् मे अनैतिहासिक घटनामो का आधिक्य दृष्टिगोचर होता है, जैसे लघु वाचना में पृथ्वीराज तथा शहाबुद्दीन के तीन युद्धो का वर्णन है, मध्यम में लगभग आठ का और वृहत् में वीस का। वास्तव में इनके बीच दो ही युद्ध हुए थे। इसी प्रकार भीम द्वारा सोमेश्वरवध, पृथ्वीराज द्वारा भीमवध, जयचन्द का मेवाड-अधिपति समरसी तथा गुजरात-नरेश के साथ युद्ध, अग्नि कुड से चौहान-वश की उत्पत्ति आदि अनैतिहासिक घटनाओ का वर्णन मध्यम अथवा वृहद् वाचनाओ में ही मिलता है, लघु में नही। यह सम्भव नही कि चन्दवरदाई ने स्वय अपनी रचना में ऐसी अनैतिहासिक घटनाओ का समावेश किया हो; क्योंकि वह पृथ्वीराज के समकालीन तथा सखा थे। यह अधिक सगत प्रतीत होता है कि चन्द के परवर्ती भाटो ने इतिहास-क्रम की ओर ध्यान न देते हुए पृथ्वीराज के यशोगान के निमित्त इन घटनाओ का समावेश पृथ्वीराज रासो में कर दिया।
(३) घटनाओं की संख्या में वृद्धि-इन वाचनामो में समान घटनामो की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है । जैसे लघुवाचना में पृथ्वीराज के केवल दो विवाहो का इच्छिनि तथा सयोगिता के साथ-वर्णन है, मध्यम में पांच का और बृहत में चौदह का। इसी प्रकार पृथ्वीराज-शहाबुद्दीन-युद्धो की संख्या लघुवाचना में तीन, मध्यम मे लगभग आठ तथा बृहत् में वीस के लगभग है।
(४) वर्णन-विस्तार-इन वाचनामो में वर्णन-विस्तार भी क्रमश वृद्धि पर है । और लघुवाचना की अपेक्षा मध्यम और मध्यम की अपेक्षा वृहत मे दशावतार-वर्णन कन्नौज से लौटते समय का युद्ध-वर्णन तथा अन्तिम'युद्ध-वर्णन क्रमश अधिक विस्तृत है।
(५) भाषा-यदि भाषा की दृष्टि से रासो की विविव वाचनामो की जांच की जाये तो भी उनको ऐसी ही परिस्थिति का ज्ञान होता है। जैसे लघु, मध्यम तथा वृहद् वाचनाओ मे भाषा के अर्वाचीन रूपो का प्रयोग क्रमश अधिक होता जाता है। ठीक यही वात रासो में विदेशी शब्दो के प्रयोग पर भी लागू होती है।
'श्री अगरचद नाहटा का उपर्युक्त लेख, पृ० ४५ ।