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चौदह ] है हिन्दी-काव्य
प० हरिशकर शर्मा (सयोजक) श्री सियारामशरण गुप्त
डा० रामकुमार वर्मा १० जन-साहित्य
आचाय जुगलकिशोर मुख्तार (सयोजक) ५० फूलचन्द्र जैन शास्त्री प० परमेष्ठीदास जैन
प० जगन्मोहनलाल गास्त्री ११ वगला-साहित्य
प्राचार्य क्षितिमोहन सेन (सयोजक)
श्री धन्यकुमार जैन १२. गुजराती-साहित्य
प० बेचरदास जी० दोशी १३ मराठी साहित्य
प्रो० प्रभाकर माचवे १४ अग्रेजी
प्रो० ए० एन० उपाध्ये १५ साहित्य-प्रकाशन--
यगपाल जैन (सयोजक)
श्री कृष्णलाल वर्मा १६ बुन्देलखण्ड
श्री शिवसहाय चतुर्वेदी (सयोजक) श्री व्यौहार राजेन्द्र सिंह
श्री वृन्दावनलाल वर्मा १७ समाज-सेवा
श्री अजितप्रसाद जैन (सयोजक) महात्मा भगवानदीन
वैरिस्टर जमनाप्रसाद जैन १८ नारी-जगत
श्रीमती सत्यवती मल्लिक (मयोजिका) " सुभद्राकुमारी चौहान " कमला देवी चौधरी
, रमारानी जैन इस विभाजन के पश्चात् कार्य-समिति के अध्यक्ष श्री वासुदेवशरण जी अग्रवाल ने ग्रथ के प्रत्येक विभाग के लिए एक उपयोगी योजना तैयार की, जिसे सब सम्पादको की सेवा में भेजा गया। योजना इम प्रकार थी
"सस्मरण और जीवनी' जितने सयत और सक्षिप्त ढग से लिखी होगी, उतनी ही वढिया होगी। मै इसके लिए तीस पृष्ठ पर्याप्त समझता हूँ। 'भारतीय सस्कृति-विभाग में अन्य लेखो के अतिरिक्त एक लेख 'भारतीय मस्कृति का विदेशो में विस्तार' शीर्षक से रहे तो बहुत अच्छा है। इस विभाग मे सौ पृष्ठ की सामग्री हो सकती है। 'जैन-दर्शन-विभाग' मे जैन-दर्शन के ऐतिहासिक तिथि-क्रम पर एक लेख बहुत उपयुक्त होगा। सस्कृत और प्राकृत-साहित्य-विभाग' में अधिकाश अप्रकाशित या अज्ञात साहित्य का परिचय देना चाहिए। इस विभाग में तीन सौ पृष्ठ हो-मौ मस्कृत के लिए और दो सौ प्राकृत के लिए। गुप्त-काल से लेकर लगभग अकवर के ममय तक जैन, वौद्ध और ब्राह्मण विद्वानो ने सस्कृत-साहित्य की जो प्रमुख सेवा की, उसका परिचय तीन लेखो मे अवश्य रहना चाहिए, जिनमें ग्रथो के नाम परिचय सहित, रचयिताओ के नाम और उनके समय का निर्देश होना चाहिए। सस्कृत-कथा-साहित्य, विशेषकर जैन-कहानी-साहित्य या तो इस विभाग में या जैन-साहित्य वाले विभाग में रखना चाहिए।