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ब्रजभाषा का गद्य - साहित्य
[ प्रारंभिक काल से सन् १८०० तक ]
श्री प्रेमनारायण टण्डन एम्० ए०
वीरगाथाकाल में काव्यभाषा का ढाँचा प्राय शौरसेनी से विकसित पुरानी व्रजभाषा का ही था । काव्यभाषा के रूप में इसका प्रचार बहुत समय पूर्व से था और चौदहवी शताब्दी के प्रारम्भ तक तो इतना बढ गया था कि जिन पश्चिमी प्रदेशो की बोलचाल की भाषा खडीवोली थी वहाँ भी कविता के लिए व्रजभाषा का ही प्रयोग किया जाता था। फारसी के प्रसिद्ध लेखक अमीर खुसरो (मृत्यु सन् १३२५) के, जिनका रचनाकाल सन् १२८३ के ग्रासपास से प्रारम्भ होता है, गीत और दोहे इसी व्रजभाषा में हैं । 'वासो', 'भयो', 'वाको', 'मोहि अचम्भो प्रावत', 'वसत है', 'देखत मे', 'मेरो', 'सोवै', 'भयो है', 'डरावन लागे', 'डस- इस जाय', जैसे व्रजभाषा-रूप उनकी कविता में बराबर मिलते हैं । वीरगाथाकाल के प्राप्य ग्रन्थो मे कुछ गोरखपन्थी ग्रन्थो का सम्वन्ध, जिनके विषय प्राय हठयोग, ब्रह्मज्ञान आदि है, व्रजभाषा गद्य से है। इनमें एक के रचयिता का नाम कुमुटिपाव है और शेप गोरखनाथ श्रीर उनके शिष्यो के रचे श्रथवा सकलित है । वावा गोरखनाथ संस्कृत और हिन्दी के पडित और शैवमत के प्रवर्तक थे । कर्मकाड, उपासना और योग तीनो की कुछ बातें इनके पन्थ में प्रचलित है । तन्त्रवाद से भी इन्हें रुचि थी और उसी के सहारे अद्भुत चमत्कारों द्वारा ये जनता को प्रभावित करते थे । गोरखपुर इनका मुख्य स्थान है । उसके ग्रास-पास इनके अनुयायी पर्याप्त संख्या में वसे है। महाराष्ट्र में भी इनके मानने वाले पाये जाते है ।
बाबा गोरखनाथ प्रसिद्ध सिद्ध थे । इनका जन्म नैपाल अथवा उसकी तराई में हुआ था । श्रवतक इनका समय सन् १३५० माना जाता था । इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में इनका समय ईसवी सन् की वारहवी शताब्दी माना गया है । परन्तु इधर की खोज के आधार पर डाक्टर पीताम्वरदत्त जी वडथ्वाल' तथा श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन' जी ने इनका समय सन् ६५० के लगभग सिद्ध किया है। कारण यह है कि इनके गुरु मछन्दरनाथ (मत्स्येन्द्रनाथ) के पिता मीनपा' का समय सन् ८७० के आस-पास माना गया है। श्री राहुल सांकृत्यायन जी के अनुसार भी इनके दादा गुरु जालन्धरपाद श्रथवा आदिनाथ का समय सन् ८६७ के पास ही श्राता है। इस हिसाब से मछन्दरनाथ का समय सन् १५० और गोरखनाथ का सन् १०५० के आस-पास समझना चाहिए। इस अनुमान की पुष्टि एक और प्रमाण से होती है । नाथपन्थी महात्मा ज्ञानदेव (ज्ञानेश्वर) का काल सन् १२३० के श्रासपास माना जाता अपने वडे भाई निवृत्तिनाथ से उपदेश ग्रहण किया था । इतिहासकारो ने इनका समय सन् १९७० के लगभग अनुमाना इन्होने है ।" निवृत्तिनाथ के गुरु ग्रैनीनाथ थे जो बाबा गोरखनाथ के शिष्य थे । इस तरह गैनीनाथ का समय १११० ओर वावाजी का १०५० के आसपास मान सकते है |
'नागरी प्रचारिणी पत्रिका, नवीन सस्करण भाग ११ में डाक्टर साहब का "हिन्दी कविता में योग प्रवाह" शीर्षक लेख ।
'गंगा' (पुरातवाक) भाग ३ अक १, श्री राहुल सांकृत्यायन जी का "मन्त्रयान, वज्रयान और चौरासी सिद्ध" शीर्षक लेख |
'मिश्रवन्धुविनोद - प्रथम भाग, पृ० १४० । * 'मिश्रवन्धुविनोद'१- प्रथम भाग, पृ० १४०
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