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ब्रह्मविलास में
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क्षक्षा क्षाय पंथ चढि, क्षय कीजे सब कर्म ॥
क्षण इकमें बसिये तहां, क्षेत्र सिद्धि सुख धर्म ॥ ३५ ॥ यह अक्षर वत्तीसिका, रची भगवती दास ॥
बाल ख्याल कीनो कछु, लहि आतमपरकाश ॥ ३६ ॥ इति अक्षर बत्तीसिका.
अथ श्रीजिनपूजाष्टकं लिख्यते ॥ दोहाजल चंदन अरु सुमन लै, अक्षत शुचि नैवेद ॥ दीप धूप फल अर्घ विधि, जिनपूजा वसुभेद ॥ १ ॥
जलपूजा—कवित्त,
नीर क्षीरसागरको निर्मल पवित्र अति सुंदर सुवास भरयोसुरपै अनाइये । गंगकी तरंगनके स्वच्छ सुमनोज्ञ जल, कंचन कलश वेग भरकें मगाइये ॥ और हू विशुद्ध अंवु आनिये उछाहसेती, जानिये विवेक जिन चरन चढाइये। भौदुख समुद्रजल अंजुलिको दीजे इहां, तीन लोक नाथकी हजूर ठहराइये ॥ २ ॥ चंदन पूजा.
परम सुशीतल सुवास भरपूर भरथो, अतिही पवित्र सव दूषन दहतु है । महावनराजनके वृक्षन सुगंध करै, संगतिके गुण यह विरद बहतु है | वावन जुचंदन सुपावन करन जग, चढै जिनचर्ण गुण ताहीतें लहतु है । मोह दुखदाहके निवारिवेको महा हिम, चंदनतें पूजौं जिन चित्त यों कहतु है ॥ ३ ॥
अक्षतपूजा. शशिकीसी किर्ण कैधों रूपाचलवर्ण कैधों, मेरुतट किर्ण
(१) क्षपकश्रेणी मांड.
PANDANIRANJE