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________________ Gmwwwwwww andpronpros000000000rporaoorenorman ROOPOROPROPORNPanyanemonePenPENDER ७८ ब्रह्मविलासमें तो वह चौथे पुरलों आय । गिरकर रहै इहां ठहराय ।। औरों थानक उपसम गहै ।दोऊसम्यकवंत जुरहै ॥२२॥ अब मिथ्यापुरमें दुख देय। मोह वली चेतनको जेय॥ नानाविध संकट अज्ञान।सहै परीपह यह गुणवान ॥२२९॥ पंच मिथ्यात्व भेद विस्तार। कहत न सुरगुरु पावे पार ॥ सादि मिथ्यात्वनाश जियलहै। ताके उदै कौनदुखसहै२३० सो दुख जानहिं चेतनराम । के जाने केवल गुणधाम ॥ कहत नलहिये पारावार।दुख समुद्र अति अगम अपार२३१ इहि विधि सहै करमकी मारा अव चेतन निज करै सम्हार॥ द्रव्य क्षेत्र काल भव भाव। पंचहु मिले वन्यो सव दाव २३२ दोहा. ध्यान सुथिरता राखि के, मनसों कहै विचार ॥ संगति इनकी त्यागिके, अब तू थिर हो यार ॥ २३३ ॥ ढाल-चेत मन भाईरे । एदेशी- . है माया मिथ्या अन शौच,मन भाइरे, तीनों सल्य निवार, चेत है मन भाईरे ॥ क्रोधमान माया तजो, मन० लोभ सवै परित्याग, है चेत मन भाईरे ॥ २३४ ॥ झूठी यह सब संपदा, मन० झूठो, सब परिवार, चेत मन भाईरे ॥ झूठी काया कोरिमी,मन० झूतो इनसों नेह, चेत मन भाईरे।।२३५॥ यह छिनमें उपजै मिहै, मन तू अविनाशी ब्रह्म, चेतमन भाईरे । काल अनंतहि है है दुख दियो; मन० इसही मोह अज्ञान, चेत मन भाइरे॥२३॥ जो तोको सुमरण कहूँ,मन आवे रंचकमात्र, चेतमनलाई रे ॥ तो कबहूँसंसारमें,मनातून विषयसुखसेव,चेतमनभाई रे॥३८॥ (१) कर्मसे जो उत्पन्न होय. WORPOORDompepapPERRRRRRRApped FFEDIOmanasanaprenewanapanaanaatmapraduatorebaortnapornoonaG000NORY apdraparoposoprompRepopROS
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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