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PROPERU/000RRORISp0000GPROPOROR , चेतनकर्मचरित्र.
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o हम हू शकति छिपायकें, रहें दूरलों जाय ॥
जो जीवत बचि हैं कहूं, तो तुम मिलि हैं आया॥२१॥ नगर ग्राम उपशांत पुर, तहां लो मेरो जोर ॥ :
जो ऐहै मो दावमें, तो मैं करिहों भोर ॥ २१८॥. तुम हू सब जन दौरिकें, आय मिलहुगे धाय ॥
तव या हंसहिं पकरिक, देहँ भली सजाय ॥ २१९ ॥ इह विचार सव सैनसों, कीन्हों मोह नरेश ॥ रहे गुप्त दवि दवि सवै, कर कर उपसम भेश ॥२२०॥
चौपाई. चेतन चर चलाय.चहुंओर। पकरहिं मूढ मोहके चोर ॥ जन छत्तीस गहे ततकाल । मूर्छित करके चले दयाल ॥ २२१॥ सूक्षम सांपरायके देश । आय कियो चेतन परवेश । तिहथानक इक लोभकुमाराजीत कियोमूर्छित तिहवा।।२२२॥ आगे पांव निशंकित धरै। अब वैरी मोसों को लरै ।। मैं जीते सब कर्म कठोर। इहि विधिधस्यो निशंकित जोरा॥२२॥
जव उपशांत मोहके देश । हद्द माहिं कीन्हो परवेश॥ है तबै मोह जोर निज किया। चेतन पकरि उलटिइत दिया॥२२४॥ है “आये सुभट मोहके दौर। मूर्छित छिपे रहे जिहँ और ॥ , पकरि हंस मिथ्यापुर माहिं। ल्याये क्रूर सवहि गहि वाह ॥२२५॥ है
इहां न कछु निहचै यह वात । उत्कृष्ट कहिये विख्यात ॥ है और थानक है बहु जहां। चेतन आय बसत है तहां ॥ २२६ ॥
उपशम समकित जाको होय । मिथ्यापुर लों आवे सोय ॥ क्षायक सम्यकवंत कंदाच । उपसम श्रेणि चढे जो राच ॥२२७॥ है
(१) सूक्ष्मसाम्पराय दशवां गुणस्थान । lonadanwloPoWappamwearanecomaachopars.
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