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- ब्रह्मविलासमें
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दुविहंपि मोक्ख हेर्ड, झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा । तमा पयत्तचित्ता, जूयं ज्झाणं समन्भसह ॥४७॥
. मात्रिक कवित्त. द्वै परकार मोखको कारण, नितप्रति तस कीजे अभ्यास । रत्नत्रयतें ध्यानप्राप्त पुन, सुख अनंत प्रगटै निजरास ।। - ध्यान होय तो लहै रतनत्रय, छिनमें करै कर्मको नास । तातें चिंता त्यागभविकजन,ध्यान करो धर मन उल्लास॥४७॥ मा मुज्झह मा रजह, मा दुस्सह इणिष्ट अत्थेतु ॥ थिरमिच्छह जड़ चित्तं, विचित्त झाणप्पसिद्धीए॥४॥
छप्पय. मोह कर्म जिन करहु, करहु जिन रागऽरु द्वेषहिं । इष्ट संयोगहि देख, करहु जिन राग विशेपहि॥ मिलहिं अनिष्टसँयोग, द्वेष जिन करहु ताहि पर।
जो थिरता चित चहहु, लहहु यह सीख मंत्र वर ।। ध्रुवध्यान करहु बहु विधिसहित, निर्विकल्पविधि धारिके। जिमि लहहु परमपद पलकमें, त्रिविध करम अघटारिका४८॥ पणतीस सोल छ प्पण, चदु दुगमेगं च जवह झाएह ॥ परमेट्ठिवाचयाणं, अण्णं च गुरुवएसेण ॥ ४९ ॥
चौपई १५ मात्रा. पंच परम पद कीजे ध्यान । तस अक्षरका सुनहु विधान। .. है तीस पंच अक्षर गणलीजे । नमस्कार नितप्रति तिहँ कीजे ॥
णमो अरहताणं' सात । णमो सिद्धाणं पंच विख्यात । णमो आयरियाणं' पँच दोयाणमो उवज्झायाण रिषि होय
(१) मत । (२) 'विनान' ऐसाभी पाठ हैं। (३) सात । poppOPRODOOOOOPeepicee/RREDEO
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