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BREPORROGRADOPEDIOJanpappappaMPRORE द्रव्यसंग्रह.
४९ कुंडलिया. सव संसारी जीवको, पहिले दरशन होय । ताके पीछे ज्ञान है, उपजै संग न दोय ॥ उपजै संगन दोय, कोइ गुण किसि न सहाई। अपनी अपनी ठौर, सवै गुण लहै बडाई ।। पैश्रीकेवल ज्ञानको, होय परमपद जव्व । तव कहुं समै न अंतरो, होहिं इकहे सब्ब ॥४४॥ असुहादो विणवित्ती,सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं॥ वदसमिदिगुत्तिस्वं ववहारणया दु जिणभाणियं॥४५॥
कवित्त. पापपरिणाम त्याग हिंसाते निकसि भाग, धरमके पंथ लाग में दयादान कररे। श्रावकके व्रत पाल ग्रंथनके भेद भाल, लगै दोप
ताहि टाल अघनिको हररे ॥ पंच महाव्रतधरि पंच हू समिति करि, तीनह गुपति परि तेरह भेद चररे । कहै सर्वज्ञ देव चारित्र व्योहारभेव, लहि ऐसा शीघ्रमेव वेग क्यों न तररे ॥ ४५ ॥
पहिरन्भंतरकिरियारोहो भवकारणप्पणासह। __णाणिस्स जंजिणुत्तं तं परमं सम्मचारित्तं ॥४६॥ ___ अभ्यंतर वाह्य दोऊ क्रियाको निरोध तहां, परम सम्यक्त गुण चारित उदोत है। वैन अरु काय दोऊ बाहिरके योग कहे, मन
अभ्यंतर योग तीनो रोध होते है। ताहीत निघट जल जात है है संसाररूप, रागादिक मलिनको याही क्रम खोत है । कषाय
आदि कर्मके समूहको विनाश करें, ताको नाव सम्यक चारित्र, दधिपोत है ॥ ४६॥ . .
(१) इस कुंडलियेमें कुछ विलक्षणता है । CompRGHODAPORoseppencompcome/03
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